जनवरी 2010


JAN Cover-10 (Final Positive)महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविता थी- ‘छोटे-से जीवन की कैसे बड़ी कथाएं आज कहूं/ क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूं’. यूं तो लेखक की हर रचना में कहीं न कहीं अपनी बात होती ही है लेकिन पाठक की यह जिज्ञासा कि जिसे मैं पढ़ रहा हूं, वह कैसा है, कौन है, क्यों लिखता है, उसका आस-पास कैसा है, अक्सर बनी रहती है. शायद यही कारण है कि दुनिया भर में लेखकों तथा अन्यों की भी आत्मकथाएं बड़ी उत्सुकता और चाव से पढ़ी जाती हैं. पाठक लेखक के छोटे-से जीवन की बड़ी कथाओं में रुचि रखता है और यह भी चाहता है कि लेखक मौन न रहे. अपने बारे में और अपनों के बारे में भी वह सब बतलाए जो उसके सोच और चिंतन का हिस्सा बनता है. लेखकों के संस्मरण तथा आत्मकथाएं पाठक को लेखक के नज़दीक ही नहीं लाते, उसके लेखन को समझने में भी सहायक होते हैं. हमारा यह नववर्षांक लेखक और पाठक के बीच की दूरी को कम करने की एक कोशिश है.

 

शब्द-यात्रा

‘तुम’ से ज्यादा दिलचस्प कहानी
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी 

आत्मबोध
कन्हैयालाल नंदन

आवरण-कथा

छोटे-से जीवन की बड़ी कथाएं
सम्पादकीय
आत्मकथा की भारतीय परम्परा यानी भोगा हुआ यथार्थ
राजकुमार
कसौटी पर हिंदी का प्रथम आत्म-चरित
बनारसीदास चतुर्वेदी
अपने समय-समाज की बोलती तस्वीर
नारायण दत्त
ताकि औरों की मुश्किलें आसान हो सकें
हूबनाथ
समय की खबर लेती ‘अपनी खबर’
डॉ. रत्नाकर पाण्डेय
आत्मकथ्यों के कंठहार और चूड़ामणि
अजित कुमार
एक बड़ी लेखिका की निर्भीक कहानी
मधुसूदन आनंद
वाह! व्यास, बढ़िया कटी
गोपाल चतुर्वेदी
दलित-वेदना का समाजशात्र
कृष्णदत्त पालीवाल
भीगी आंखों और उन्मुक्त हंसी का तरल कोलाज
यश मालवीय
एम.एफ. हुसेन के भीतर एक छोटा-सा मक़बूल
मनमोहन सरल
ज़िंदगी के अखाड़े में बने रहने के लिए
सोहन शर्मा
मनुष्यत्व को अर्जित और समृद्ध करने की कथा
सूर्यबाला
जस की तस धर दीन्ही चदरिया
संतोष श्रीवास्तव
झूठ के बवंडर में पिंजरे की मैना
सुधा अरोड़ा
एक त्री के बनने की कथा
राजकिशोर

आत्मकथा-अंश

अर्ध कथानक
बनारसीदास जैन
मेरी सहधर्मिणी
स्वामी श्रद्धानंद
…और अशफाक मेरा सच्चा मित्र बन गया
रामप्रसाद बिस्मिल
किसी भी नाम से बेटा जिये तो
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
हलो सफरिंग, हलो ज्वाय…!
डॉ. हरिवंशराय बच्चन
काश! मेरी यह किताब उनके हाथों में न जाये…
अमृता प्रीतम
मेरा पशु-काव्य
गोपाल प्रसाद व्यास
लगा जैसे हर घर कब्र बन गया है
मोहनदास नैमिशराय
फ़ायदा तू भी उठा ले कालिया…
रवींद्र कालिया
 बेटा, जाओ ज़िंदगी को रंगों से भर दो
एम.एफ. हुसेन
उस चुप्पी को मैं पहले भी सुन चुका था
भीष्म साहनी
ऐसे लिखा गया था ‘आवारा मसीहा’
विष्णु प्रभाकर
लेखन ही सारे संकटों में मुझे थामे रहा
मन्नू भंडारी
पति, पत्नी और सम्पादक
चंद्रकिरण सौनरेक्सा
उस प्रेमपत्र ने लेखिका बना दिया
पुष्पा मैत्रेयी

धारावाहिक उपन्यास

अनुकथा (भाग-4)
सुधा

समाचार

जब भवन ने बच्चन-संध्या मनायी
कैलाश सेंगर