Category: विधाएँ

दो कविताएं – डॉ. सुनीता जैन

  घरघराहट इस बंद घर की सारी खिड़कियां खुली हैं पर खिड़कियों में न चिड़ियां हैं, न हवा न चांद की कंदील, न सूखे पत्तों का दिठौना इतिहास तो है हर आले और चौखट में घर की लेकिन कमरों का…

मैं प्रतीक्षा में हूं  –  शरद जोशी 

स्मरण (वर्ष 2016 स्वर्गीय शरद जोशी की 85वीं सालगिरह का वर्ष है. (जन्म : 21 मई, 1931) वे आज होते तो मुस्कराते हुए अवश्य कहते, देखो, मैं अभी भी सार्थक लिख रहा हूं. यह अपने आप में कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि…

डर  –  डॉ. रश्मि शील

कहानी मानसी अभी बिस्तर पर ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा. उसने सवालिया नज़रों से मोबाइल की ओर देखा जैसे जान लेना चाहती हो कि सुबह–सुबह किसे, क्या तकलीफ है! ‘कॉल बैक’ न करना पड़े इसलिए उसने झट से…

किताबों के देश में  –  शंभुनाथ

आकलन याज्ञवल्क्य ने स्त्राr गार्गी के लगातार सवाल करने से गुस्सा होकर कहा था– ‘इससे आगे कुछ पूछा तो तुम्हारे सिर के टुकड़े हो जायेंगे.’ याज्ञवल्क्य किताबों के देश से बहुत दूर थे. किताबें सवालों से जन्मती हैं. इसलिए किताबों…

जीवन का अर्थ : अर्थमय जीवन  –  अनुपम मिश्र

व्याख्यान अक्सर सभा सम्मेलनों के प्रारम्भ में एक दीपक जलाया जाता है. यह शायद प्रतीक है, अंधेरा दूर करने का. दीया जलाकर प्रकाश करने का. इसका एक अर्थ यह भी है कि अंधेरा कुछ ज़्यादा ही होगा, हम सबके आसपास.…