Category: कुलपति उवाच

कर्मेसु कौशलम् (कुलपति उवाच ) मई 2016

स्वकर्म के प्रति मेरी खोज और उसके करने की रीति मिलकर एक कर्म बनते हैं. आमने सामने आ उपस्थित हुए कार्य को मैं अपनी सारी शक्ति समर्पित करता हूं. ऐसी समर्पण बुद्धि से किया हुआ कोई भी काम मनुष्य के…

कर्मयोग का संदेश (कुलपति उवाच) अप्रैल 2016

बांल गंगाधर तिलक ने वाणी और आचार द्वारा कर्मयोग सिखाया. उन्होंने जाति-व्यवस्था से लड़ाई नहीं ठानी. उनका यह मत था कि जाति-व्यवस्था राजनीतिक दासता  का परिणाम है, और यदि राजनीतिक दासता नष्ट हो जायेगी तो जाति-व्यवस्था, चातुर्वर्ण्य के मूल उद्देश्य…

सत्य की उपासना (कुलपति उवाच) March 16

गांधीजी ने कहा था- ‘एक समय में मैं मानता था कि परमेश्वर सत्य है. अब मैं मानता हूं कि सत्य परमेश्वर है.’ यह सत्य मुझे आनंद, स्वतंत्रता और शांति देता है. तब मुझे इसकी सेवा कैसे करनी चाहिए? मैं किसी…

ब्राह्मण स्वभाव (कुलपति उवाच) फरवरी 2016

शुद्ध अर्थात ब्राह्मण स्वभाव वाले मनुष्य में देव, द्विज, ज्ञानी और विशेषकर अपने गुरू के प्रति पूज्य भाव होता है. विद्वान और मुमुक्षु के प्रति नम्रता का आचरण, जो सच्ची संस्कारिता का वास्तविक लक्षण है- उसमें होता है. वह बोलता…

कुलपति उवाच (जनवरी 2016)

स्वाभाविक कर्म यदि मुझे अपने सत्य की रक्षा करनी हो तो उस पर अटल रहना हो तो मुझे मन, वाणी और कर्म की एकता साधनी चाहिए. प्रत्येक मनुष्य के सत्य की नींव या मूल आधार उसका स्वभाव है. अभिरुचि, उसकी…