Category: स्त्री विमर्श

सुनो खदीजा! सुनो द्रौपदी!  – अमृता प्रीतम

नारी-विमर्श एक सफेद कागज़ है, जिस पर कुछ काले अक्षर खामोश से पड़े हैं. और फिर मेरे देखते-देखते उनमें कुछ हरकत आती है, कुछ कंपन-सा आता है. देखती हूं- वे अक्षर फिर आहिस्ता-आहिस्ता रेंगते हुए मेरी उन उंगलियों पर सरकने…

अंधेरे से पार आती स्त्री

♦  मधु कांकरिया  > एक बार वैज्ञानिकों ने एक आविष्कार किया. उन्होंने दो मेढक लिये और दो पात्र लिये. दोनों पात्रों में पानी भरा था. एक पात्र में उन्होंने तापमान काफी ज्यादा रखा. दूसरे पात्र में उन्होंने जल का तापमान सामान्य…

लड़ाई तो पितृसत्तात्मक संरचना से है

♦  सुधा अरोड़ा   > पिछले पचास सालों में हमारी जीवन शैली, तौर-तरीकों, मनोरंजन के साधनों, बोली-बानी और हमारे समाज में लक्ष्य करने लायक तब्दीली देखी जा सकती है. बहुत नहीं, सिर्फ पचास साल पहले की हम बात करें तो औरतें…

द्रोपदी के कितने पति?

♦  डॉ. मुंशीराम शर्मा           इस समय महाभारत-काव्य का जितना विस्तार है, उतना उसके मूल निमार्ण के समय नहीं था, इस तथ्य से आजकल के सभी विद्वान सहमत हैं. ऐसी अवस्था में यह मान लेना असंगत न…

नारी जापान की

♦  गोविंद रत्नाकर            जापान का स्त्री-वर्ग दो स्पष्टतः विभागों में विभक्त है-एक पत्नी वर्ग, दूसरा है रमणी वर्ग. यह विभाजन उस देश की मूलभूत वृत्तियों का एक रोचक विवरण है और विदेशियों के लिए अत्यंत अचरजभरा.…