Tag: मन्नू भंडारी

मई 2008

शब्द-यात्रा तपिश दिल की बुझा लेना आनंद गहलोत पहली सीढ़ी  चल अकेला रे… रवींद्रनाथ ठाकुर आवरण-कथा आगे बढ़ना है तो चलना ही पड़ेगा डॉ. कन्हैयालाल नंदन सभ्यता में पहिया अनूप सेठी साइकिल-चिंतन विजय कुमार तब जीवन का छंद कविता बनता…

जनवरी 2010

महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविता थी- ‘छोटे-से जीवन की कैसे बड़ी कथाएं आज कहूं/ क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूं’. यूं तो लेखक की हर रचना में कहीं न कहीं अपनी बात होती ही है…