Category: धारावाहिक

सीधी चढ़ान (आठवीं क़िस्त)

सन् 1897 में चिमनभाई ओरिजिनल साइड के एडवोकेट हुए. अंग्रेज़ बैरिस्टरों से भरपूर उस साइड में इकतीस वर्ष की आयु के इस वकील का आगमन ज़रा धृष्टतापूर्ण था. 1899 में वे डाकोरजी के केस में विलायत गये. थोड़े समय में…

सीधी चढ़ान (तीसरी क़िस्त)

समाज सुधार करने की मेरी लगन छोटी-मोटी प्रवृत्तियों में कुछ-न-कुछ कार्य करती रही. मैंने शिखा छोड़ दी और दूसरों से छुड़वाई. मैंने ‘पीताम्बर’ पहनना छोड़ दिया और अपने मित्रों को भी धोती पहनकर खाना सिखाया. अनेकों में मुक्त-कंठ से नाटक के…

सीधी चढ़ान (दूसरी क़िस्त)

बचपन में मैं जिस बालिका के साथ सचीन में खेला था, उसकी स्मृतियों द्वारा मेरी कल्पना ने ‘देवी’ का निर्माण कर लिया था. उस कल्पना-मूर्ति के चारों ओर मैंने एक छोटी-सी सृष्टि की रचना की थी और उसमें मैं सुख-दुख-दोनों…

सीधी चढ़ान (पहली क़िस्त)

अपनी प्रति वर्ष की डायरी के आरम्भ में मैं दो सूत्र लिखा करता था- मरण तो निश्चित ही है, फिर बैठे क्या रहना- लम्बे जीवन के अंधकारमय दिनों में- बिना काम, बिना नियम और बिना नाम के? जीवन ईश्वर का दिया…

सीधी चढ़ान (आत्मकथा) दूसरा खंड

गुजराती अस्मिता को रूपाकार देने वाले कनैयालाल माणिकलाल मुनशी वस्तुतः बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. एक राजनेता, एक संविधानविद, एक कानूनविद, एक कर्मठ कार्यकर्ता के साथ-साथ वे अपने समय के प्रतिनिधि साहित्यकार भी थे. उनकी कहानियां, उपन्यास आदि आज गुजराती-साहित्य…