Category: धारावाहिक

आधे रास्ते (चौथी क़िस्त)

1913 तक मैं कनुभाई था– मां-बाप का, नाते-रिश्तेदारों का, जाति का, गांव में मुझे जो पहचानते थे उनका, मास्टरों का, बड़ौदा कालेज के सहपठियों तथा प्रोफेसरों का. कितनी ही बार घर के लाड में मुझे ‘भाई’ कहते और माताजी तथा…

आधे रास्ते (तीसरी क़िस्त)

जब मेरा जन्म हुआ तो मुझे बड़ा लाड़-प्यार मिला. छह लड़कियों के बाद मैं ही एक लड़का था. सबको प्रतीक्षा कराते-कराते मैंने थका डाला था. मेरे आते ही पिताजी तहसीलदार हुए. फिर जब मैं छोटा था तब मैंने सबके मन…

आधे रास्ते (दूसरी क़िस्त)

काशीराम काका के पुत्र नवनिधिराम भी वकील थे. वे टीला छोड़कर पास ही के मुहल्ले में एक हवेली में जा रहे थे. वेस्वभाव से सतोगुणी और संतोषी थे. अनूपराम मुन्शी के दो पुत्र हवेली में ही. रहते थे. वे अलग…

आधे रास्ते (पहली क़िस्त)

मेरा जन्म संवत् 1944 में पूष मास की पूर्णिमा को दोपहर के बारह बजे भड़ौंच में हुआ. उस दिन सन् 1887 के दिसम्बर के महीने की 29 वीं तारीख थी या 30वीं, इसका मुझे ठीक पता नहीं है. चालीस वर्ष…

आधे रास्ते (आत्मकथा) पहला खंड

गुजराती अस्मिता को रूपाकार देने वाले कनैयालाल माणिकलाल मुनशी वस्तुतः बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. एक राजनेता, एक संविधानविद, एक कानूनविद, एक कर्मठ कार्यकर्ता के साथ-साथ वे अपने समय के प्रतिनिधि साहित्यकार भी थे. उनकी कहानियां, उपन्यास आदि आज गुजराती-साहित्य…