Category: धारावाहिक

आधे रास्ते (नौवीं क़िस्त)

‘भाई’-सम्बंधी एक भारी चिंता खड़ी होती जा रही थी. उसकी बहू बारह वर्ष की हो गयी थी, इसलिए उस समय के रिवाज़ के अनुसार थोड़े ही दिनों में उसे ससुराल बुलाने की ज़रूरत आ पड़ी थी. बहू के मां-बाप का…

आधे रास्ते (आठवीं क़िस्त)

धीरे-धीरे मैं बदल रहा था, परंतु मेरे हृदय का एक भाग तो जैसा था वैसा ही रहा. जब मैं कॉलेज की छत पर अकेला घूमता तब सचीन में मिली बाला की कल्पना-मूर्ति मेरे आगे आ खड़ी होती और मैं विह्वल…

आधे रास्ते (सातवीं क़िस्त)

जब मेरे मैट्रिक होने की खबर आयी तो पिताजी की आंखों में आंसू आ गये. मुझे छाती से लगाते हुए उन्होंने कहा- “कनु, मेरी मैट्रिक पास होने की अभिलाषा अधूरी रह गयी थी. तूने आज उसे पूरा कर दिया. मुझसे…

आधे रास्ते (छठवीं क़िस्त)

इन्हीं दिनों मैंने डय़ूमा के  ‘थ्री मस्केटीयर्स’ आदि उपन्यास पढ़ने शुरू किये और मेरी आंखों के आगे नयी सृष्टि निर्मित होने लगी. सांस लेने की परवाह किये बिना मैं इन उपन्यासों में खो गया. दार्तान्य, अरथोस मिलाडी, व्राजिलोन और दला…

आधे रास्ते (पांचवीं क़िस्त)

हम नासिक से लौटे और पिताजी की बदली धंधूके हुई. वहां किसी के ऊपर रिश्वत लेने का आरोप था. इसलिए, उसकी जांच-पड़ताल के लिए उनकी नियुक्ति हुई और मां, बहनें तथा मैं भड़ौंच रहे. इस समय एक छोटा-सा पिल्ला मेरा…