– कन्हैयालाल ‘नंदन’ जब जब हमने कबूतर उड़ाकर आसमानों को बताया कि हम चाहते हैं अमन तो उन्होंने रास्ता अपनाया दमन का दागीं गोलियां दनादन हमारे शांति-कपोत उनके लिए हो गये स़िर्फ क्ले पिजन! उन्हें क्या पता कि…
Category: कविता
अनलिखे पत्र का गीत
वीर सक्सेना पत्र तुम्हारा मिला, एक भी अक्षर नहीं लिखा, समझ गया मैं, जीवन में कितना सूनापन है. कितने अर्थ किये, लेकिन परिभाषा नहीं मिली कुछ बातें ऐसी हैं जिनको भाषा नहीं मिली कुछ प्रश्नों के भीतर…
मनिआर्डर
– किरण अग्रवाल भैयादूज के बाद आता था मनिआर्डर भैया का इंतज़ार करती थी मैं बेसबरी से डाकिये की घंटी का और डाकिया करता था इंतज़ार कि कब मैं रखूंगी उसकी हथेली पर मनिआर्डर से आये रुपयों का एक छोटा-सा…
डाक बाबू
– अनिल अत्रि रोज़ रोज़ मैं राह तुम्हारी देखा करता जाने कब तुम खत मेरा लेकर आओगे नाम पुकारोगे मेरा चश्मा सीधा कर मेरे दरवाज़े की कुंडी खटकाओगे पर जब ड्योढ़ी लांघ मेरी आगे जाते हो कसम राम की संग…
फागुन
♦ रांगेय राघव > पिया चली फगनौटी कैसी गंध उमंग भरी ढफ पर बजते नये बोल, ज्यों मचकीं नयी फरी। चंदा की रुपहली ज्योति है रस से भींग गयी कोयल की मदभरी तान है टीसें सींच गयी। दूर-दूर…