मधुर मनोहर अतीव सुंदर, यह सर्व विद्या की राजधानी। यह तीनों लोकों से न्यारी काशी। सुज्ञान धर्म और सत्यराशी।। बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्व विद्या की राजधानी। नये नहीं हैं ये ईंट पत्थर। है विश्वकर्मा का…
Category: कविता
फकीर इल्म के हैं… – चकबस्त
(यह जग-ज़ाहिर है कि मालवीयजी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए किस तरह देश भर से भीख मांगी थी. गांधीजी ने तब उन्हें ‘सबसे बड़ा भिखारी’ कहा था. इस दान-यात्रा में 3 दिसम्बर 1911 को मालवीयजी लखनऊ पहुंचे थे. वहां…
हम सूरज के टुकड़े (पहली सीढ़ी) फरवरी 2016
।। आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।। जैसे निहाई पर लोहे का पत्थर ढाला जाता है वैसे ही हम नये दिन ढालेंगे ताकत और पसीने से नहाये हुए हम पाताल में उतरेंगे और धरती के गर्भ से नया वैभव जीत…
बया पाखी का दुःख – डॉ. कृपासिंधु नायक
उड़िया कविता बया पाखी अब जान गया है अपनी नियति को, अपने जीवन के अनागत भविष्य को सूखे जख्म पर पड़ी पपड़ी की तरह उसे भी एक दिन झड़ जाना होगा चुपचाप इस धरती पर. पड़ोस में बहती नदी का…
‘देवा’ – मंगेश पाडगांवकर
(मंगेश पाडगांवकर के निधन से मराठी कविता को एक नया चेहरा देने वाला समर्थ रचनाकार उठ गया है. उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनकी एक कविता, जिसका हिंदी में अनुवाद स्वर्गीय अनिल कुमार ने किया था.) मैंने देखे कांच के…