नोबेल–कथा
8 दिसम्बर, 1832 को नार्वे में जन्मे व्योर्न्सन की ख्याति आधुनिक नार्वेजियन साहित्य के जन्मदाता के रूप में है. कवि, उपन्यासकार, आलोचक, नाटककार के अलावा वे अपने समय के एक प्रखर नैतिक एवं राजनीतिक नेता भी रहे.
सन् 1903 में स्वीडिश अकादमी ने इन्हें नोबेल पुरस्कार देते हुए कहा था– ‘एक कवि के रूप में उन्होंने जो आदर्श, उच्च, भव्य एवं बहुमुखी कार्य किया है और जो प्रेरणा की ताजगी तथा आत्मा की शुद्धता, दोनों ही दृष्टियों से अद्भुत एवं अपूर्व है, उनके इस कार्य के सम्मान में यह पुरस्कार इन्हें दिया जा रहा है.’
इनकी प्रमुख कृतियां हैं– ‘सिन्नोवे सोल्वाकेन’, ‘आर्ने’, ‘ए हैप्पी ब्वाय’, ‘बिटवीन द बैटिल्स’, ‘फिशर मेडेन’, ‘लेम हुल्डा’, ‘द ग्रेट ट्रोलाजी’, ‘सिगर्ड द बास्टर्ड’, ‘सिगर्ड जोलसरफर’, ‘द न्युली मैरिड’, ‘ए बैंक्रप्सी’, ‘मैरी स्टुअर्ट इन स्काटलैंड’, ‘आर्नत्न्जार’, ‘द किंग’, ‘बियान्ड अवर पावर्स’ आदि.
जिस व्यक्ति की यहां कहानी कही जा रही है वह अपने इलाके का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं धनवान किसान था. उसका नाम था थोर्ड ओवरास. एक दिन वह गर्व से भरा हुआ पादरी के अध्ययन–कक्ष में पहुंचा.
‘मेरा लड़का हुआ है,’ उसने कहा– ‘और बपतिस्मा के लिए मैं उसे लाना चाहता हूं.’
‘उसका नाम क्या रखोगे?’
‘अपने पिता के नाम पर उसका नाम फिन रखना चाहता हूं.’
‘और धर्मपिता?’
उसने जो नाम लिया वे प्रत्यक्ष इलाके के सर्वश्रेष्ठ स्त्राr-पुरुष थे.
‘और कुछ?’ पादरी ने उसकी ओर देखते हुए पूछा. किसान थोड़ा हिचकिचाया.
‘मेरी बहुत इच्छा है कि बपतिस्मा स्वयं उसके मन से हो.’ आखिर में उसने कहा.
‘कब?’
‘किसी कार्यदिवस के दिन.’
‘अगले शनिवार को दोपहर बारह बजे.’
‘और कुछ?’ पादरी ने पैसा ले लिया.
‘यह तीसरा अवसर है थोर्ड, जब तुम अपने बेटे के बाबत मेरे यहां आये हो.’
‘उसके प्रति यह मेरी अंतिम ज़िम्मेदारी है?’ थोर्ड ने कहा और अपनी नोटबुक समेटते हुए विदा लेकर बाहर निकल आया.
और लोग भी उसके पीछे–पीछे हो लिये.
दो सप्ताह पश्चात एक शांत एवं निश्छल दिन में पिता–पुत्र एक नाव पर विवाह की व्यवस्था के सिलसिले में स्टोरलिडेन के यहां जा रहे थे.
‘यह सुरक्षित नहीं है,’ पुत्र ने कहा और उस फट्टे को ठीक करने के लिए खड़ा हुआ जिस पर वह बैठा हुआ था.
तभी जिस फट्टे पर वह खड़ा हुआ था, वह फिसल गया. उसने संभलने के लिए बांहें फैलायीं लेकिन उसकी चीख निकल गयी और वह नाव से नीचे गिर गया.
‘चप्पू पकड़ो,’ उछलते हुए पिता ने अपनी चप्पू फेंकी और ज़ोर से चिल्लाया.
लेकिन कई कोशिशों के बाद पुत्र का शरीर शिथिल होने लगा.
‘रुको,’ पुत्र की ओर अपनी नाव ले जाते हुए पिता चिल्लाया. तभी पुत्र पीठ के बल लुढ़कने लगा. एकटक कुछ देर उसने पिता की ओर देखा और डूब गया.
थोर्ड के लिए यह अविश्वसनीय था. उसने नाव को रोका और जहां उसका पुत्र डूबा था, उस बिंदु पर अपनी निगाह टिकायी, मानो उसी बिंदु पर वह निश्चय ही ऊपर आयेगा. वहां से कुछ बुलबुले उभरे, फिर कुछ और बुलबुले और अंत में एक बड़ा–सा बुलबुला सतह पर आया और आते ही फट गया और फिर झील पहले की तरह एक चिकने एवं चमकीले आईने में तब्दील हो गयी.
तीन दिन और तीन रात लोगों ने देखा कि वह बिना खाये–पीये–सोये लगातार उसी बिंदु के चारों ओर चक्कर काट रहा है. अपने पुत्र के शरीर के लिए वह झील को मानो मथ रहा था. चौथे दिन सुबह उसे पुत्र का शव मिला. जिसे वह अपनी बांहों में भरकर उस पहाड़ी पर ले आया, जहां उसका घर था.
इस घटना के एक वर्ष बाद जाड़े की एक गहराती शाम में पादरी को अपने दरवाज़े के बाहर बरामदे पर किसी के सांकल बजाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. पादरी ने दरवाज़ा खोला; एक दुबला–पतला इंसान, जिसकी कमर झुकी हुई थी और बाल सफेद थे, अंदर दाखिल हुआ. उसे पहचानने के पहले पादरी ने थोड़ी देर तक उसे गहरी निगाह से देखा. यह थोर्ड था.
‘इतनी देर गये तुम टहलने निकले हो?’ पादरी ने कहा और उसके सामने मूर्तिवत् खड़ा रहा.
‘हां, सही में कुछ देर हो गयी है.’ थोर्ड ने कहा और बैठ गया.
पादरी भी बैठ गया, मानो वह इंतज़ार ही कर रहा था. देर तक, काफी देर तक शांति छायी रही. अंततः थोर्ड ने कहा–
‘मेरे पास कुछ है जिसे मैं अपने पुत्र के नाम पर गरीबों में बांटना चाहता हूं.’
उसने उठकर मेज पर कुछ रुपये रखे और फिर आकर बैठ गया. पादरी ने उन रुपयों को गिना.
‘यह तो अच्छी–खासी रकम है!’ उसने कहा.
‘नहीं,’ थोर्ड ने अपनी टोपी कुछ यूं घुमायी मानो अब वह जाने ही वाला हो.
तब पादरी उठ खड़ा हुआ और थोर्ड का हाथ पकड़ लिया– ‘भगवान् करे कि यह बच्चा तुम्हारे लिए वरदान सिद्ध हो!’ उसकी आंखों में गम्भीरता से देखते हुए कहा.
सोलह साल बाद एक दिन थोर्ड एक बार फिर पादरी के अध्ययन–कक्ष में खड़ा था.
‘आश्चर्य है थोर्ड कि तुम्हारी उम्र का कुछ पता नहीं चलता.’ पादरी ने उस व्यक्ति में कोई परिवर्तन न पाकर कहा.
‘क्योंकि मुझे कोई चिंता नहीं है.’ थोर्ड ने जवाब दिया.
इस पर पादरी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ पल बाद उससे पूछा– ‘आज शाम क्या कर रहे हो?’
‘कल मेरे बेटे का दृढ़ीकरण संस्कार है, उसी के लिए आया था.’
‘वह एक होनहार लड़का है.’
‘यह जाने बिना कि गिरजाघर में कल जब मेरा बेटा जायेगा तो उसका स्थान कहां होगा, मैं यजमानी देना नहीं चाहता.’
‘उसका स्थान सर्वोपरि होगा.’
‘अच्छा, तो मैंने जान लिया, यह रहा पादरी का दस डॉलर.’
‘मैं आपके लिए और क्या कर सकता हूं? पादरी ने थोर्ड पर निगाहें जमाते हुए पूछा.’
‘और कुछ नहीं.’
थोर्ड बाहर निकल आया.
आठ वर्ष और गुज़र गये और तब एक दिन पादरी के अध्ययन–कक्ष के बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ा. कई लोग उधर ही बढ़ रहे थे, जिसमें थोर्ड सबसे आगे था.
पादरी ने उसे देखा और पहचान लिया.
‘आज तो तुम पूरी बारात के साथ आये हो, थोर्ड!’ उसने कहा.
‘मेरी बगल में जो यहां खड़ा है गुदमंड, उसकी पुत्री स्टोरलीन से मेरे पुत्र का विवाह होना निश्चित हुआ है; मैं आपसे वेंज प्रकाशित करने के लिए यहां निवेदन करने आया हूं.’
‘क्यों, वह तो इस पल्ली की सर्वाधिक धनी लड़की है!’
‘हां, लोग ऐसा ही कहते हैं,’ एक हाथ से अपने बालों को पीछे ले जाते हुए थोर्ड ने जवाब दिया.
पादरी कुछ देर के लिए मानो गहन विचार में डूब गया. फिर बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किये उसने अपनी पुस्तक में उनके नाम दर्ज कर लिए, जिसके नीचे थोर्ड एवं गुदमंड ने हस्ताक्षर किये थे. थोर्ड ने मेज पर तीन डॉलर रखे.
‘मेरे लिए एक डॉलर ही काफी होगा.’ पादरी ने कहा.
‘मुझे यह अच्छी तरह पता है, लेकिन वह मेरा इकलौता बच्चा है और मैं उसका विवाह दिल खोलकर करना चाहता हूं.’ कुछ रुककर थोर्ड फिर बोला– ‘यह मेरी सम्पत्ति की आधी रकम है, जो आज मैंने बेच डाली.’
पादरी बहुत देर तक नीरव बैठा रहा. अंततः बहुत कोमल स्वर में पूछा–
‘थोर्ड, अब तुम क्या करने की सोचते हो?’
‘कुछ ऐसा, जो बेहतर हो.’
वे कुछ देर तक दोनों वहां बैठे रहे, झुकी आंखों के साथ थोर्ड और थोर्ड पर निगाह टिकाये पादरी. अंत में पादरी ने बहुत कोमल स्फुट स्वर में कहा–
‘मैं सोचता हूं, तुम्हारा पुत्र अंततः तुम्हारे लिए एक सच्चा वरदान सिद्ध हुआ.’
‘हा, मैं भी ऐसा ही सोचता हूं,’ ऊपर देखते हुए थोर्ड ने कहा. आंसू की दो बड़ी-बड़ी बूंदें उसके गालों पर धीरे-धीरे रेंग रही थीं.
मई 2016