Category: स्तंभ

‘पत्रकथा’ के आगाज़ की कहानी

 – धनंजय वर्मा बीसवीं सदी का वह शायद अंतिम वर्ष था. मुम्बई से श्रीमती पुष्पा भारती का एक खत मुझे मिला. वे धर्मवीर भारती के पत्रों का संकलन कर रहीं थी. उनका आग्रह था कि मैं भारती जी के पत्रों की फोटोकॉपियां…

वे दिन! वे खत! वे बातें!

– पुष्पा भारती वेदिन! यानी अपना अतीत! और जब अतीत की बातें याद कीं तो मन नन्हीं ऐलिस जैसा बन गया! नन्हें खरगोश के पीछे वह जिस वंडरलैंड में घुस गयी थी- जैसी अजीबोगरीब तरह-तरह की परिस्थितियों का उसने सामना किया…

साहित्य की स्थाई सम्पत्ति हैं पत्र

 – पं. रामशंकर द्विवेदी ‘मेरी समझ में किसी व्यक्ति की भारी-भरकम साहित्यिक कृति आंधी के समान है, उसके साहित्यिक पत्र उन झोंकों के समान हैं, जो धीरे से आते-जाते रहते हैं और वायु की थोड़ी मात्रा साथ लाने पर भी सांस…

मेघदूत का पत्र यक्ष के नाम

सुरेश ऋतुपर्ण मेरे प्रिय मित्र यक्ष, अनेक सदियों के बाद यह पत्र भेज रहा हूं. यह नहीं कि इससे पहले लिखने के लिए विचार न किया हो. लेकिन व्यस्ततावश लिख नहीं पाया. तुम उलाहना दे सकते हो कि काहे की…

अध्यक्षीय (जनवरी 2016)

  …जीवन-उत्कर्ष नव वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन-उत्कर्ष नव… मधुशाला के अमर गायक श्री हरिवंशराय बच्चन ने इन शब्दों के साथ नववर्ष का स्वागत किया था. वस्तुतः हर नया वर्ष ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेह’ का संदेश…