⇐ विवेकानंद ⇒ जो अपने गुरूभाइयों के नाम स्वामी विवेकानंद ने 1894 ई.में लिखा था. प्रिय भ्रातृवृंद, इसके पहले मैंने तुम लोगों को एक पत्र लिखा है, किंतु समयाभाव से वह बहुत ही अधुरा रहा. राखाल एवं हरि…
Category: चिंतन
दृष्टि और दिशाबोध
⇐ भद्रसेन ⇒ जब कभी मैं किसी धर्म के सम्बंध में पढ़ता या सुनता हूं, तो बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा का एक उद्धरण स्मरण हो आता है. यदि दुनिया के सब धर्मों वाले उसे हृदयंगम करें, तो परस्पर सौहार्द…
भारतीय संस्कृति बौद्धिक है
⇐ पुरुषोत्तमदास टंडन ⇒ हमारे सामने आज दो रास्ते हैं, जो भयावह हैं, डर के रास्ते हैं. भारतीय संस्कृति को इन दो रास्तों से बचाना है. एक रास्ता वह है, जिस पर हमारे पश्चिम की नकल करनेवाले…
चुप्पी और शब्द
अगर मैं कुछ बोलता हूं, तो मैं उन शब्दों के अधीन हो जाता हूं, अगर मैं नहीं बोलता हूं, तो वे शब्द मेरे अधीन रहते हैं. बोलने की पीड़ा से चुप रहने की पीड़ा कहीं अच्छी है. चुप…
परिक्रमा
सूर्य के चौगिर्द प्रदक्षिणा करती हमारी पृथ्वी ने फिर एक चक्कर पूरा कर लिया. लेकिन पृथ्वी केवल सूर्य के चौगिर्द ही नहीं घूमती. प्रकाश के देवता की प्रदक्षिणा करती-करती वह अपना भी चक्कर काटती, आनंद नृत्य करती जाती है. प्रकाश…