Category: चिंतन

एक पत्र ज्योतिर्मय

 जो अपने गुरूभाइयों के नाम स्वामी विवेकानंद ने 1894 ई.में लिखा था. प्रिय भ्रातृवृंद,     इसके पहले मैंने तुम लोगों को एक पत्र लिखा है, किंतु समयाभाव से वह बहुत ही अधुरा रहा. राखाल एवं हरि ने लखनऊ से एक…

दृष्टि और दिशाबोध

♦   भद्रसेन            जब कभी मैं किसी धर्म के सम्बंध में पढ़ता या सुनता हूं, तो बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा का एक उद्धरण स्मरण हो आता है. यदि दुनिया के सब धर्मों वाले उसे हृदयंगम करें,…

प्रश्न का समाधान

⇐  धर्मपाल जैन  ⇒        शिवराम-किंकर योगत्रयानंद महाशय सोनारपुर में रहते थे. मकान के दूसरे तल्ले में एक बड़ा कमरा था. उसी में उनका आसन था. श्री गोपीनाथ कविराज प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचींद्रनात सान्याल के साथ वहां पहुंचे.     देखा, पुस्तकों…

 विज्ञान और आनंद

⇐  नीत्शे  ⇒     वैज्ञानिक कार्य और अनुसंधान करनेवाले व्यक्तियों को तो विज्ञान भरपूर आनंद देता है, परंतु जो केवल उसके परिणामों का अध्ययन करता है, उसे विज्ञान बहुत थोड़ा आनंद देता है. और चूंकि धीरे-धीरे विज्ञान के सभी बड़े…

नयी दिशाएं, नये आयाम

⇐  केजिता  ⇒    ब्रह्मांड-स्थित पृथ्वीतर पिंडों पर जीव के अस्तित्व का प्रश्न कुछ उलझ-सा गया है. असीम-अपार ब्रह्मांड, उसमें बिंदुमात्र-सी पृथ्वी. उसके बाहर जीव का कहीं भी अस्तित्व ही न हो, बहुत अधिक तर्कसम्मत नहीं लगता. परंतु विज्ञान के आधार…