(अश़फाक का पत्र देशवासियो के नाम)
मेरे प्यारे देशवासियो,
भारत माता को आज़ाद करवाने के लिए रंगमंच पर हम अपनी भूमिका अदा कर चुके हैं. गलत किया या सही, हमने जो भी किया, स्वतंत्रता पाने की भावना से प्रेरित होकर किया. हमारे अपने निंदा करें या प्रशंसा, लेकिन हमारे दुश्मनों तक को हमारी हिम्मत और वीरता की प्रशंसा करनी पड़ी. कुछ लोग कहते हैं कि हमने गुलामी को न सहा और देश में आतंकवाद फैलाना चाहा, पर यह सब गलत है. हमारे कितने ही साथी आज भी आज़ाद हैं, फिर भी हमारे किसी साथी ने कभी भी किसी नुकसान पहुंचाने वाले तक पर गोली नहीं चलायी. यह हमारा उद्देश्य नहीं था. हम तो आज़ादी हासिल करने के लिए देशभर में क्रांति लाना चाहते थे.
सरकार भी अंग्रेज़ों की और जज भी अंग्रेज़ों के, फिर न्याय की मांग किससे करें! जजों ने हमें निर्दयी, बर्बर, मानवता पर कलंक आदि विशेषणों से पुकारा है. हमारे शासकों की कौम के जनरल डायर ने निहत्थों पर गोलियां चलवायीं. बच्चों, बूढ़ों, स्त्राr-पुरुषों सब पर दनादन गोलियां दागी गयीं. तब इंस़ाफ के इन ठेकेदारों ने अपने भाई-बंधुओं को किन विशेषणों से सम्बोधित किया था! फिर हमारे साथ ही यह सुलूक क्यों?
हिंदुस्तानी भाईयो! आप चाहे किसी भी धर्म या सप्रदाय के मानने वाले हों, देश के काम में साथ रहो. आपस में व्यर्थ न लड़ो. रास्ते चाहे अलग हों, लेकिन उद्देश्य तो सबका एक है. सभी कार्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के साधन हैं. एक होकर देश की नौकरशाही का मुकाबला करो. अपने देश को आज़ाद कराओ.
देश के सात करोड़ मुसलमानों में मैं पहला मुसलमान हूं जो देश की आज़ादी के लिए फांसी पर चढ़ रहा है, यह सोचकर मुझे गर्व महसूस होता है.
सभी को मेरा सलाम. हिंदुस्तान आज़ाद हो. सब खुश रहें.
आपका भाई,
अश़फाक
(जनवरी 2016)