♦ जैकोव सीगल
‘हेलो…’
‘हेलो. मैं बड़ा गजब का सेब खा रही हूं.’
‘क्या कहा?’
‘गजब का सेब.’
‘किससे बात करनी है आपको?’
‘तुमसे.’
‘तुम कौन हो?’
‘एक लड़की.’
‘मुझे जानती हो क्या?’
‘नहीं, मगर मैंने तुम्हें दो-एक बार देखा है यों ही इच्छा हुई कि तुम्हें फोन करूं.’
‘यह बताने के लिए कि तुम गजब का सेब खा रही हो?’
‘हां, बस यही.’
‘हूं… पर बड़ी कमाल की आवाज है तुम्हारी.’
‘धन्यावाद! अब फोन रखने का वक्त हो गया है.’
‘इतनी जल्दी? मगर तुमने फोन क्यों किया था?’
‘यह देखने के लिए कि तुम्हारी आवाज़ कैसी है.’
‘बस, इतना ही?’
‘हां, इतना ही. चीरियों!’
‘बस एक मिनिट. फोन रख न देना. तुम्हारी आवाज बड़ी कमाल की है.’
‘वह तो तुम पहले ही कह चुके हो. अलविदा…’
‘तुम फोन रख दोगी, तो तुम्हे मैं कैसे ढ़ूंढ पाऊंगा?’
‘ढूंढ़ा तो मैंने तुम्हें है, न कि तुमने मुझे.’
‘मान भी जाओ. कम-से-कम अपना नाम तो बता दो.’
‘उससे तुम्हारा क्या बनेगा? फिर भी लो. मेरा नाम है कात्या, कातेंका, एकातेरीना, जो भी तुम्हें ज्यादा अच्छा लगे.’
‘खुद तुम्हें कौन-सा ज्यादा पसंद है?’
‘असल में इनमें से कोई भी नहीं. मुझे ‘करीना’ पसंद है.’
‘ठीक… करीना, क्या मैं तुम्हें फोन कर सकता हूं?’
‘नहीं कर सकते. तुम्हें मेरा नंबर नहीं मालूम है.’
‘तो बता दो, अपना नंबर.’
‘नहीं.’
‘अच्छी बात है. मगर मुझे फोन ज़रूर करना, ठीक है करीना?’
‘…’
‘हेलो, हेलो, क्या तुम फोन पर हो?’
‘हां.’
‘तो माजरा क्या है?’
‘मैं सोच रही हूं… अच्छी बात है, मैं फोन करूंगी.’
‘कल इसी समय?’
‘अच्छी बात है. कल छह बजे.’
कल छह बजे
‘मैं गजब का सेब खा रही हूं. हेलो.’
‘मैं आधे घंटे से फोन के सामने बैठा हूं.’
‘तुमने कहा था छह बजे, और अब छह बजे हैं.’
‘धन्यवाद.’
‘किस बात का.’
‘करीना.’
‘क्या?’
‘अगर मैं कुछ पूछूं तो बताओगी?’
‘यह तो सवाल पर निर्भर है. खैर पूछो, क्या पूछते हो!’
‘तुम्हारी उम्र क्या है?’
‘सोलह. लगभग सोलह. और तुम सत्रह के हो, तुम्हारा नाम मिशा है… और तुम 23 पत्रो व्का स्ट्रीट पर रहते हो.’
‘तुम्हें यह सब कैसे पता है?’
‘मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है… लगभग सब कुछ!’
‘यह तो न्याय की बात नहीं है.’
‘क्यों?’
‘क्योंकि तुम्हें मेरे बारे में सब कुछ पता है, जबकि मैं तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानता. क्या तुम कद में ऊंची हो?’
‘साधारण.’
‘सुंदर हो?’
‘बहुत साधारण. अब मुझे जाना होगा.’
‘बस, सिर्फ एक मिनिट. तुम फिर फोन करोगी न?’
‘क्यों करूं मैं?’
‘क्योंकि… कब करोगी?’
‘पता नहीं.’
‘अपना नंबर क्यों नहीं बताती मुझे? मान भी जाओ!’
‘…’
‘क्या फिर सोच में पड़ गयीं?’
‘ओह! ठीक है. लिख लो- 52689.’
उसी दिन 6.10 बजे शाम
‘क्या यह टेलिफोन डाइरेक्टरी पूछताछ विभाग है?’
‘हां, कहिये क्या सेवा है.’
‘बात ऐसी है जी कि… मेरे पास एक फोन-नंबर है, और मैं उसका पता जानना चाहता हूं.’
‘माफ कीजिए, हम ऐसी जानकारी नहीं देते.’
‘मगर मुझे उसकी बड़ी जरूरत है.’
‘माफ कीजिए हम यह जानकारी नहीं दे सकते.’
‘तो मैं क्या करूं?’
‘मुझे अफसोस है, हम आपके लिए कुछ भी नहीं कर सकते. चाहे तो टेलिफोन डाइरेक्टरी में ढूंढ़ लीजिये.’
‘उसमें तो बरसों लग जायेंगे.’
‘हां मगर हम कुछ नहीं कर सकते.’
दो दिन बाद
‘क्या मैं करीना से बात कर सकता हूं?’
‘इस नाम का कोई व्यक्ति इस नंबर पर नहीं है.’
‘होना तो ज़रूर चाहिये… एक लड़की सोलह-एक साल की.’
‘ओह, तो वह कात्या ग्राडोवा होगी. अपने लिए कैसे काल्पनिक नाम घड़ा करती है यह भी! करीना,वाह! कात्या..ओ कात्या!’
‘हेलो.’
‘करीना? मैं बोल रहा हूं.’
‘मैंने भी यही सोचा था.’
‘जब मैंने करीना को बुलाने को कहा, तो वे समझ ही नहीं पायीं कि मैं किसकी बात कर रहा हूं.’
‘केवल तुम्हीं जानते हो. यह मेरा रहस्य है.’
‘अच्छा-अच्छा. मैं तुम्हारा रहस्य नहीं खोलूंगा… मुझे तुम्हारा ‘सरनेम’ पता चल गया है ग्राडोवा है न तुम्हारा सरनेम? अब तो मैं टेलिफोन पूछताछ विभाग से तुम्हारा नाम बताऊंगा, तो फोन नंबर और पता बता देंगे.’
‘ना, ऐसा न करना, प्लीज!… या चाहो तो करके देखो. कुछ भी लाभ न होगा, फोन हमारे नाम पर है ही नहीं.’
‘यानी मुझे इंतज़ार करते रहना पड़ेगा?’
‘क्यों करना पड़ेगा?’
‘कैसी कमाल की आवाज पायी है तुमने.’
‘… मैं देखना चाहता हूं कि तुम दिखती कैसी हो.’
‘बताया न मैंने, बहुत साधारण!’
‘तो क्या हुआ!’
‘नहीं, ईमान से कहती हूं, बहुत साधारण. समझ लो बहुत ही साधारण. अलविदा.’
कुछ दिन बाद
‘जरा करीना को बुला दीजिए.’
‘किसे?’
‘मेरा मतलब है कात्या… कात्या ग्राडोवा.’
‘क्या-क्या काल्पनिक नाम घड़ लेती है यह लड़की! कात्या बाहर गयी हुई है.’
और कुछ दिन बाद
‘क्या मैं कात्या ग्राडोवा से बात कर सकता हूं.’
‘सबके सब ग्राडोवा लोग बाहर गये हुए हैं.’
और कुछ दिन बाद
‘क्या मैं कात्या ग्राडोवा से बात कर सकता हूं?’
‘मैं उसकी मां हूं. कातेंका गर्मियां बिताने अपनी नानी के पास गांव गयी हुई है. दो-एक रोज में मैं उसे पत्र लिखने वाली हूं. कोई संदेश?’
‘मेहरबानी करके उसे इतना बता दीजिये कि मिशा ने फोन किया था.’
जून 1941 के अंत में
‘क्या मैं कात्या ग्राडोवा से बात कर सकता हूं.’
‘शायद वह घर में नहीं है.’
‘तो कृपया उसकी माताजी को ही बुला दीजिये.’
‘एक मिनट ठहरिये.’
‘हेलो.’
‘हेलो, क्या आप कातेंका की माताजी बोल रही हैं?’
‘हां-हां, क्या कात्या की कोई चिट्टी आयी है?’
‘नहीं. क्या आपको मेरी याद है? मैंने कुछ दिन पहले फोन किया था.’
‘अच्छा-अच्छा, याद है. कात्या कल गांव से लौट रही है. कल फोन करना.’
‘नहीं, कल नहीं कर सकूंगा… कल तो मैं जा रहा हूं.’
‘क्या सुरक्षा के लिए बाहर भेजे जा रहे हो?’
‘नहीं, मोर्चे पर जा रहा हूं. कात्या को मेरी नमस्ते कहियेगा. आपको भी नमस्ते.’
‘नमस्ते भाई, नमस्ते. तुमने क्या नाम बताया था अपना?’
‘मिशा.’
चार साल के बाद
‘क्या मैं कात्या ग्राडोवा से बात कर सकता हूं?’
‘किससे?’
‘कात्या ग्राडोवा से.’
‘यहां तो किसी का यह नाम नहीं है.’
‘वह यहीं रहा करती थी, युद्ध से पहले.’
‘तो एक मिनट ठहरिये. मैं पड़ोसिन से पूछती हूं.’
‘हेलो. क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकती हूं?’
‘मैं कात्या ग्राडोवा को खोज रहा हूं.’
‘वह तो चार साल पहले यहां से चली गयी. पहले उसे सुरक्षा के लिए शहर से बाहर भेजा गया, फिर वह लौटकर यहां नहीं आयी.’
‘तो वह मास्को में नहीं है?’
‘है तो मास्को में ही, उसके पिता के मारे जाने के बाद से उन लोगों ने इस फ्लैट में आना बंद कर दिया है. वह अपने पति के माता-पिता के साथ रहती है. वही उसको बच्चा भी हुआ. उसकी मां भी वहीं रहने चली गयी.’
‘क्या उसका फोन नम्बर आपको मालूम है?’
‘जरा ठहरीये. यहीं कहीं दीवार पर लिखा हुआ है. हां, यह रहा- 830168…’
उसी दिन
‘क्या यह 830168 है?’
‘जी हां.’
‘क्या मैं एकातरीना ग्राडोवा से बात कर सकता हूं?’
‘वह अब ग्राडोवा नहीं जेमत्सोवा है. और वह मैं ही हूं. हेलो मिशा.’
‘तुम कैसे जान गयी कि मैं ही हूं?’
‘बड़ी आसानी से.’
‘चार साल से ज्यादा हो गये, लगभग पांच साल, फिर भी तुमने मेरी आवाज पहचान ली!’
‘हां, मैंने पहचान ली- और मुझे बड़ी खुशी है कि तुम…’
‘कि मैं जिंदा हूं…’
‘हां, और इसकी भी कि तुमने फोन किया.’
‘आज भी तुम्हारी आवाज बिलकुल उस समय जैसी ही है.’
‘क्या सचमुच साढ़े चार साल हो गये?’
‘उससे भी ज्यादा… लगभग पांच… तो अब तुम जेमत्सोवा हो?’
‘हां, मैं विवाहिता हूं.’
‘हां, मुझे मालूम है. मुझे पता है कि तुम्हारा एक बच्चा है और यह भी कि तुम्हारी मां तुम्हारे साथ रहती है. और…तुम विवाहिता हो.’
‘बिलकुल ठीक! तुम मेरे बारे में सब कुछ जानते हो और मैं तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानती.’
‘जानने को है ही क्या! जैसे और लोग, वैसे मैं. मोर्चे पर लड़ा. दो बार जख्मी हुआ…’
‘बहुत ज्यादा?’
‘एक बार तो काफी. पर जख्म भर गये, जैसे कुत्ते के भी भर जाते हैं. और क्या? हां, सेना से बर्खास्त हुआ, घर गया. लगता हैं, मैं लम्बा-चौड़ा हो गया हूं. मां ने सब चीजें सम्भालकर रखी हुई थीं- सूट, कमीजें, जूते. और वे सब मीलों छोटे पड़ते थे. मैं न उन्हें पहन सकता था, न कुछ कर सकता था. मजेदार बात है कि मैं काफी लम्बा-चौड़ा हो गया हूं.’
‘लगभग पांच साल भी तो हो गये.’
‘और अपने पुराने सूट की जेब में मुझे एक नोटबुक मिली, जिसमें कि तुम्हारा फोन नम्बर था. मैंने फोन किया. उन लोगों ने मुझे नंबर दिया. और अब मैं तुम्हें फोन कर रहा हूं.’
‘धन्यवाद.’
‘और अब तुम विवाहिता हो…’
‘हां, काफी समय से.’
‘तुम तो जैसे क्षमायाचना कर रही हो!’
‘बिलकुल अकस्मात हो गया विवाह.’
‘अपने पति से तुम्हें प्यार है?’
‘बहुत. वे भी बहुत जख्मी हो गये थे. और अपने बेटे से मुझे प्यार है. वे दोनों भी मुझे बहुत प्यार करते हैं.’
‘करीना…’
‘…’
‘करीना,क्या मैं तुमसे मिल सकता हूं?’
‘…’
‘जवाब क्यों नहीं देतीं? सोचने लग गयीं क्या?’
‘नहीं, मैंने पहले ही सब सोच रखा है.’
‘कैसी सुंदर है तुम्हारी आवाज!’
‘तब तो हमें बिलकुल नहीं मिलना चाहिए.’
‘क्यों?’
‘ऐसा है, तुम मुझे एक सुंदर आवाज के रूप में जानते हो, यह बहुत अच्छी बात है. तुम सुंदर आवाज की बात सोचते हो और शायद समझते हो कि मैं भी कुछ खास चीज हूं. समझ रहे हो न मेरी बात?’
‘पूरी तरह नहीं.’
‘किसी दिन समझ जाओगे. और अब सब कुछ वैसा ही रहने दो, जैसा वर्षों पहले था. किसी जमाने में एक लड़की थी करीना, जिसकी आवाज कमाल की थी.’
‘…’
‘लो, अब तुम जवाब नहीं दे रहे हो.’
‘मैं सोचने लगा हूं.’
‘मिशा, मेरी शुभकामनाएं! जीवन में आनंद मनाओ.’
‘पता नहीं, मना पाऊंगा या नहीं. मगर कोशिश करूंगा…’
‘ज़रूर करना. तो अब दोनों अलविदा कह लें.’
‘करीना, कोई अच्छी-सी बात कह दो उपसंहार के रूप में.’
‘जैसे कि…?’
‘जो भी तुम्हें जंचे… सबसे अच्छी बात, जो तुम सोच सको.’
‘मैं गजब का सेब खा रही हूं…’
(अप्रैल 1971)