इंटरव्यू मालिकों का

♦  शफीक अहमद सिद्दीकी          

     असली घी के बारे में शायद इब्राहीम जलीस साहब ने लिखा था कि जिस तरह लोग आजकल इत्र इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह आनेवाले जमाने में लोग असली घी का इस्तेमाल किया करेंगे. मगर साहब, असली घी के बगैर लोग आज जिंदा हैं और शायद भविष्य में भी जिंदा रहेंगे, लेकिन नौकरों के बगैर गुजारा मुश्किल है, कसम खुदा की, क्या खुशनसीब थे वे लोग, जिन्हें नौकरी ही नहीं मिलता.

     कोई अल्लाह का बंदा या बंदी हमारे घर का रुख ही नहीं करता. भूल से आ भी जाये तो ज्यादा दिनों तक ठहरता नहीं. साहब, आपसे क्या परदा, इन नौकरों, बल्कि कहना चाहिए, इन कमबख्त नौकरों ने तो हमें परेशान करके रख दिया है. आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन यह हकीकत है कि हम तो पूरी मुमकिन कोशिश करते हैं कि नौकर साहब या नौकरी साहिबा को कोई तकलीफ न हो, लेकिन फिर भी दिन-ब-दिन उनके नखरे बढ़ते ही जाते हैं. कभी-कभी महसूस होता हैं, जैसे हम खुद नौकर बन गये हों और हमारे नौकर हमारे मालिक.

     यकीन कीजिये, मुझे तो ऐसा लगता है कि आगे चलकर समाज में केवल उसी आदमी की इज्जत हुआ करेगी, जिसके घर का काम सम्भालने के लिए अदद नौकर होगा. लोग उन्हीं घरों में अपनी लाडली बेटियां ब्याहने में गौरव समझेंगे, जिनमें नौकर या नौकरानी होगी. आजकल के लड़के भी यही चाहने लगे हैं कि उनके विवाह के दहेज में उन्हें एक नौकरानी जरुर मिले, ताकि उनकी बीवियों को चूल्हा न फूंकना पड़े. घर का सब काम दहेज में मिली नौकरानी करे और वे अपनी बीवियों के साथ खूब हनीमून मनायें, फिल्में देखें और पिकनिकों पर जायें.

     आनेवाली दौर में दो समधिनों की बातें कुछ इस तरह हुआ करेंगी-

     लड़की की अम्मी- बहन, लड़की की तरफ से तो आप बिलकुल फिकर मत कीजिये. मुझे अपने मुंह मियांमिट्ठू बनना पसंद नहीं, लेकिन बात मैं ईमानदारी की कहूंगी कि मेरी लाडली हजारों में नहीं, लाखों में एक है. खुदा उसकी जवानी सलामत रखे, बारहवां दरजा पास है.

     लड़के की अम्मी- माशाल्लाह! माशाल्लाह! मगर बहन…

     लड़की की अम्मी- और शकल-सूरत में तो खुदा झूठ ना बुलाए, चौदहवीं का चांद भी उसके सामने शरमा जाता है.

     लड़के की अम्मी- हां, हां क्यों नहीं… मगर बहन…

     लड़की की अम्मी- आप दहेज की फिकर मत कीजिये. आलीशान नहीं तो, ऐसा बुरा भी न होगा.

     लड़के की अम्मी- हां-हां, यह सब तो ठीक है, लेकिन आप ज़रा मेरी बात भी तो सुन लीजिए. माना, लड़की खूबसूरत है, पढ़ी-लिखी है, रही दहेज की बात सो इसका हमें भी लालच नहीं. हमारे यहां खुदा का दिया सब कुछ है. हमारे लड़के की तो बस एक ही जिद है कि शादी ऐसी जगह  करूंगा, जहां से दुल्हन अपने साथ नौकर, बल्कि अगर मुमकिन हो तो नौकरानी साथ लाये. यकीन करना बहन, वैसे तो अपनी बिरादरी में एक-से-एक हसीन लड़कियां पड़ी हैं. लोग तो अपनी बेटियों को थालियों में सजाकर देने को तैयार हैं, लेकिन मैं उन घरों में अपने बेटे की शादी इसलिए नहीं करना चाहती कि वहां से दुल्हन के साथ नौकरानी मिलने की कोई उम्मीद नहीं है. मैंने सुना था, तुम्हारे यहां एक नौकरानी है, इसलिए…

     आने वाले दौर में और भी बहुत कुछ होगा. मसलन नौकर-नौकरानियों का इंटरव्यू मालिक लोग नहीं, मालिकों का इंटरव्यू नौकर-नौकरानियां लिया करेंगे. उस दौर की तस्वीर कुछ यों होगी-

     सजी हुई इमारत पर बोर्ड लगा हुआ है- ‘नौकर या नौकरानी मिल सकते हैं. जिन्हें जरूरत हो, हमसे मिलें.’

     कमरे में मेज-कुर्सी रखी हुई है. कुर्सी पर एक ‘अम्मा’ (नौकरानी को हमारी घरेलू बोलचाल में ‘अम्मा’ कहते हैं ) धुले हुए कपड़े पहने बैठी हैं. मेज पर लिफाफों का ढेर है. अम्मा एक लिफाफा उठाती हैं और पढ़कर उसे बड़ी बेदर्दी से रद्दी की दोटकरी में फेंक देती हैं. आखिरकार कुछ खुशकिस्मत लिफाफे चुन लिये जाते हैं. मेज पर रखी हुई घंटी बजती है और नौकर और नौकरानियों की ज़रूरतमंद औरतें कमरे में दाखिल होती हैं. सभी को नौकरानी की ज़रूरत है. अभी सबका इंटरव्यू शूरू होने वाला है. सबके दिल धड़क रहे हैं कि न जाने ‘अम्मा’ साहिबा क्या पूछे बैठें.

     कुर्सी पर बैठी हुई ‘अम्मा’ इंटरव्यू के लिए आयी हुई महिलाओं की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाती हैं और पूछती हैं-

     ‘क्या काम करना पड़ेगा?’

     ‘तनख्वाह क्या मिलेगी?’

     ‘सुबह-शाम कितनी सब्जियां बनती हैं?’

     ‘घर में कितने आदमी हैं?’

     ‘रसोईघर कैसा है?’

     ‘खाना पकाने का सब समान घर में मौजूद है या नहीं?’

     बेचारी ज़रूरतमंद औरतें एक-एक करके ‘अम्मा’ के सामने आती हैं जवाब देकर निकल जाती है. किसी का घर छोटा है, तो किसी के घर में आदमी ज्यादा हैं. किसी का रसोईघर ठीक नहीं है, तो कोई तनख्वाह ज्यादा नहीं दे सकती.

     अंत में सिर्फ दो औरतें रह जाती हैं. एक बेगम ख्वाजा और दूसरी मिसेज खान. दोनों की हैसियत एक-दूसरी से बढ़-चढ़कर है. कहने को तो वे दोनों सहेलियां हैं, लेकिन मन-ही-मन दोनों एक दुसरी से जलती हैं. दोनों के दिल धड़क रहे हैं कि देखे कौन किसको मात देता है. पहले बेगम ख्वाजा, सामने आती हैं. कुर्सी पर बैठी हुई ‘अम्मा’ पहले तो उन्हें सिर से पैर तक देखती हैं और फिर पूछती हैं-

     ‘अच्छा! तो आपको नौकरानी की ज़रूरत है?’  

     ‘जी हां, आपने बिलकुल ठीक समझा.’ बेगम ख्वाजा हकलाते हुए कहती हैं.

     ‘आपके घर में कौन-कौन रहता है?’

     ‘जी, बहुत अच्छा है. यकीन कीजिये, बहुत शरीफ आदमी हैं. उनका नाम भी ख्वाजा शरीफुद्दीन है.’

     ‘मुझे उनके नाम-वाम से कोई मतलब नहीं… अच्छा तुम यह बताओं, तुम्हारे बच्चे कितने हैं?’

     ‘फिलहाल तो सिर्फ दो है. वैसे घर में एक सास भी हैं. वे तो अपना काम खुद करती हैं. आपको तो घर का, बस, छोटा-मोटा काम करना पड़ेगा.’

     ‘समझ में नहीं आता, तीन-चार आदमियों के छोटे-से घर को नौकरानी की ज़रूरत कैसे महसूस हुई?’

     ‘देखिये ना… मैं एक सोशल वर्कर हूं. कौम और बिरादरी की खिदमत के लिए मुझे अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता है. घर के काम-काज के लिए तो भी आखिर कोई-न-कोई होना ही चाहिए.’

     ‘माफ कीजिए… मैं खुद सोशल वर्क में दिलचस्पी रकती हूं.’

     ‘जी? जी हां, जी हां, आपने ठीक फरमाया. यह तो बहुत अच्छी बात है. आप जिस दिन सोशल वर्क पर जायें, मुझे बतला दें. उस दिन घर का काम मैं खुद कर लूंगी.’

     ‘मुझे अफसोस है, मैं आपको अपनी मालकिन नहीं बना सकती.’

     ‘वह क्यों?’ बेगम ख्वाजा हैरान होकर पूछती हैं.

     ‘इसके दो कारण हैं. पहला तो यह कि आपको नौकरानी की जरूरत नहीं. तीन या चार आदमियों के आदमियों के घर को एक नौकरानी का खर्च जरूरत से ज्यादा महसूस होगा. जल्दी ही आपको एहसास हो जायेगा कि एक नौकरानी का रखना इतना आसान नहीं, जितना आप समझती हैं. फिर आप कहेंगी कि तनख्वाह ज्यादा है.’

     ‘मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि ऐसा कभी नहीं होगा.’

     ‘वैसे भी मुझे आपके खयालात पसंद नहीं है.’

     ‘जी? मैं आपका मतलब नहीं समझी.’

     ‘हो सकता है, किसी दिन शहर में कोई कल्चरल शो हो और आप सोशल वर्क का बहाना करके घर से रफूचक्कर हो जायें. आखिर मैं भी सोसल वर्क में दिलचस्पी रखती हूं. उस दिन क्या मैं घर में भाड़ झोंकती बैठी रहूंगी?’

     ‘बारी-बारी से भाड़ झोंकने के बारे में आपका क्या खयाल है?’ बगल ख्वाजा आखिरी कोशिश करती है.

     ‘जी नहीं, आप तशरीफ ले जा सकती हैं. मुझे ऐसी मालकिन नहीं चाहिए, जो अपने ऐशोआराम के सामने नौकर की खुशी का खयाल न रखे.’

     बेगम ख्वाजा को निराश होकर जाते देख मिसेज खान के होठों पर मुस्कराहट खिलने लगती हैं? अब अकेली उम्मीदवार रह गयी है और उन्हें शत-प्रतिशत सफलता की आशा है. कुर्सी पर बैठी ‘अम्मा’ मिसेज खान से कहती हैं- ‘अच्छा, तो आप भी सोशल वर्क में दिलचस्पी रखती हैं?’

     ‘जी नहीं. आपने बिलकुल ही गलत समझा. मुझे सोशल वर्क में कोई दिलचस्पी नहीं है और आपके कभी-कभी सोशल वर्क पर जाने से मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा.’

     ‘आपके यहां कुल कितने आदमी हैं?’

     ‘पंद्रह.’

     ‘पंद्रह आदमियों का काम तो बहुत होगा अच्छा यह बताओ, पहले भी कोई नौकरानी रखी है या सारा काम मुझे ही करना पड़ेगा?’

     ‘जी, मैं पूरी कोशिश कर रही हूं. उम्मीद है, जल्द ही एक छोटी नौकरानी का बंदोबस्त हो जायेगा.’

     ‘यह ठीक है. जब छोटी नौकरानी का बंदोबस्त हो जाये तो खबर कर दीजियेगा.’

     ‘मिसेज खान बड़ा जोर लगाती हैं कि ‘अम्मा’ रजामंद हो जायें, लेकिन कम्बख्त ‘अम्मा’ टस-से-मस नहीं होतीं.’

(अप्रैल 1971)

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