हमारी दृढ़ता ही हमारी ताकत है  –  सुरेंद्रलाल जी. मेहता

प्रतिवेदन

(17 जनवरी 2016 को हुई वार्षिक काउंसिल बैठक में अध्यक्षीय वक्तव्य)

प्रिय मित्रो,

आप सबको मेरी ओर से नववर्ष का अभिनंदन एवं शुभकामनाएं.

‘भवन’ के पिछले एक दशक के बारे में जब मैं सोचता हूं तो ईश्वर एवं देवी मां की उस अनुकम्पा से अभिभूत हो जाता हूं जो उन्होंने ‘भवन’ पर निरंतर बरसायी है.

एक दशक पहले ‘भवन’ अपने जीवन के एक कठिन काल से गुज़रा था. गाड़ी को पटरी पर लाना और नुकसान की भरपायी कर पाना एक बड़ी चुनौती थी. पर जब हमने अपनी यात्रा प्रारंभ की तो बाधाएं अवसर बनते गये और पथ के रोड़े स्वयं चलकर किनारे होते गये.

क्या यह सब सम्भव था यदि ईश्वर ने हमारा हाथ पकड़कर हर कदम पर हमें राह नहीं दिखायी होती? क्या थका और निराश भवन-परिवार अचानक गतिमान होकर अपने भीतर एक दृढ़ निश्चय एवं विश्वास का अनुभव कर सकता था, और एक होकर परिश्रम की इच्छा उसमें जग सकती थी?

कठिन समय ने भवन-परिवार में एकता, सुसंगति तथा दृढ़ निश्चय का भाव भरा था, और ‘भवन’ एक निश्चित उद्देश्य और अटल दृढ़ता के साथ आगे बढ़ सका. मेरा विश्वास कीजिए, यह सब ईश्वर की अनुकम्पा और देवी मां के स्नेह और आशीर्वाद का ही परिणाम था.

ईश्वर ने हमारा पूरी विनय के साथ अर्पित किया अधिकार-पत्र स्वीकार किया और हमें अपना उपकरण बनाया. मुनशीजी द्वारा अक्सर बोले जाने वाले शब्द ‘भवन का कार्य ईश्वर का कार्य है’ का अर्थ हमारी समझ में आया. हम यह पूरी तरह समझ पाये कि मुनशीजी एवं उनके सहयोगियों, जैसे हरसिद्धभाई दिवेटिया, लीलावती बेन, आचार्य जिनविजय मुनि, गिरधारीलाल मेहता, जयंतकृष्ण दवे तथा कई अन्यों का संकल्प कितना पवित्र था.

मुनशीजी हमारे स्वतंत्रता-संग्राम में आकंठ डूबे हुए थे. तीसरे दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने भारत के इतिहास में एक राज्य के सर्वाधिक सफल गृहमंत्री के रूप में काम किया. लेकिन ‘भवन’ की अवधारणा उनके सोच में हमेशा बनी रही. उन्होंने गांधीजी से अपने इस सोच के बारे में बात की. बापू ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया. 1938 में महात्मा गांधी की आशीर्वाद-निधि के साथ ‘भवन’ का जन्म हुआ. नेहरू, सरदार पटेल, राजाजी और राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने मुनशीजी की सहायता की, उन्हें प्रोत्साहन दिया. मुझे भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द याद आ रहे हैं. उन्होंने कहा था-

‘भारत के स्वतंत्रता-संग्राम के उफान में जिन अनेक संस्थाओं ने जन्म लिया, उनमें भारतीय विद्या भवन का, उसकी दृष्टि, गतिविधियों और स्वतंत्रता-आंदोलन के मूलभूत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लगातार योगदान के कारण एक विशिष्ट स्थान है… यह महात्मा गांधी के उस आशीर्वाद कर ही फल है जो इसे जन्म के समय मिला था…’

पिछले एक दशक में ‘भवन’ अपने आधार को दृढ़ करने एवं सांस्कृतिक-शैक्षणिक मिशन को आगे बढ़ाने में सफल हुआ है. इस बीच भारत में दस नये स्कूल और खाड़ी-देशों में पांच स्कूल स्थापित किये गये. हम सिकंदराबाद में एक आधुनिक स्कूल बनाने की योजना बना रहे हैं, जिसके लिए स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया ने पांच करोड़ रुपये की राशि दी है. इस बीच कुछ कमज़ोर संस्थाओं को मज़बूत बनाने का काम हुआ है. हमारे कुछ केंद्रों की लम्बे समय से अनसुलझी समस्याओं का समाधान किया गया है. प्रदर्शन-कलाओं के प्रचार एवं विकास के कार्य में हमारा योगदान दस गुना बढ़ा है. और यह प्रक्रिया चल रही है. हमारे सामने नये अवसर आ रहे हैं और नयी समस्याएं भी.

इन्फोसिस फाउण्डेशन ने अपनी चेयर पर्सन श्रीमती सुधा मूर्ति के माध्यम से हमें बेंगलूरु, त्रिची, कोलकाता तथा अगरतला में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए दो करोड़ बीस लाख रुपये की सहायता दी थी. हमारे कार्य से प्रभावित होकर श्रीमती  मूर्ति ने इस वर्ष महाराष्ट्र और ओडिशा में प्रदर्शन-कलाओं के विकास के लिए पांच करोड़ रुपये देने की घोषणा की है.

हम इन्फोसिस फाउण्डेशन के आभारी हैं. हममें विश्वास प्रकट करने के लिए हम श्रीमती मूर्ति के भी आभारी हैं.

समाज-सेवा के कार्यों में भी ‘भवन’ योगदान कर रहा है. हमारा गांधी कंप्यूटर इंस्टीच्यूट समाज के वंचित तबकों को कंप्यूटर-शिक्षा देने का काम कर ही रहा है. यह कार्य सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में भी किया जा रहा है. भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने गरीब आदिवासी क्षेत्रों में नये केंद्र खोलने के लिए दस करोड़ रुपये का अनुदान दिया था. हमारा कोची केंद्र महिला विभाग चलाता है जहां गरीब विधवाओं के सशक्तीकरण का काम हो रहा है. हमारे अनेक स्कूलों में झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए कक्षाएं चलती हैं. हमारा अमृतसर केंद्र दो सौ से अधिक विधवाओं की सहायता कर रहा है. यहां मानसिक रूप से बाधित, ऑस्टिक तथा डाउन्स सिंड्रम बच्चों के लिए भवन ‘मुस्कान’ स्कूल भी चलाता है.

हमारे सैनिकपुरी केंद्र में गरीबों के लिए एक छोटा-सा अस्पताल भी चलाया जा रहा है. बेंगलुरु केंद्र में समाज के वंचित वर्ग के बच्चों के लिए एक स्कूल चलाया जा रहा है. (इस स्कूल के लिए इन्फोसिस फाउण्डेशन ने एक करोड़ रुपये की राशि दी है.) पुथुकोडे, केरल में भवन शारीरिक एवं मानसिक रूप से बाधित बच्चों के लिए स्कूल चलाता है. बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए इस वर्ष हम  स्कूल के संरचनात्मक ढांचे को मज़बूत बना रहे हैं. कुछ अन्य केंद्रों में भी गरीबों तथा आदिवासियों की सहायता का कार्य चल रहा है. भवन अच्छा काम करने वाले कुछ अन्य सेवा-संगठनों के संपर्क में भी है. अब, जबकि हमारी वित्तीय स्थिति कुछ मज़बूत हो गयी है, हम समाज-सेवा-गतिविधियों को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं.

यहां मैं डॉ. मनमोहन सिंह को उद्धृत करने का लोभ-संवरण नहीं कर पा रहा हूं. प्रधानमंत्री के रूप में ‘भवन’ में आने पर उन्होंने ‘भवन’ को हमारी सर्वाधिक राष्ट्रीय दुलारी संस्थाओं में से एक बताया था. उन्होंने कहा था ः

‘भवन एक अनोखा संस्थान है. इसके पांव हमारी शानदार विरासत एवं संस्कृति के ठोस आधार पर टिके हैं और इसका शीश उस सबको समेटने के लिए आकाश छू रहा है जो नवीन तथा आधुनिक है. यह एक ऐसा संस्थान है जहां श्रेष्ठता तथा सामाजिक समानता साथ-साथ चलती है. हमारे समाज की आवश्यकताओं के प्रति प्रासंगिक बने रहने के लिए ‘भवन’ द्वारा किये जा रहे अथक प्रयासों के लिए मैं ‘भवन’ को बधाई देता हूं.’

‘भवन’ के केंद्रीय कार्यालय-भवन के नवीकरण के बाद अब हम अपने स्कूलों-कालेजों के भवनों की ओर ध्यान दे रहे हैं. डाकोर, अहमदाबाद समेत कुछ अन्य केंद्रों में भी उनके भवनों की मरम्मत आदि के लिए आर्थिक सहायता दी जा रही है. मुनशीजी ने अपनी माथेरान की जायदाद भवन के कर्मचारियों के लिए ‘हालिडे-होम’ बनाने के लिए ‘भवन’ को दे दी थी. कुछ दशकों तक यह इस काम में आती रही, पर बाद में इमारत की स्थिति को देखते हुए इसे बंद करना पड़ा. अब हमने इसे फिर इसके पुराने वैभव को लौटाया है. यहां पूरी आधुनिक सुविधाओं में सात परिवार एक साथ छुट्टियां बिता सकते हैं. इसके लिए हमें खाण्डवालाजी,  सहायक रजिस्ट्रार श्री बाबा शाह और आर्किटेक्ट गोरेगांवकर को बधाई देनी होगी.

हमारी एक बड़ी समस्या भवन के लिए निष्ठावान, योग्य व्यक्तियों के चुनने की है. मानद तथा वैतनिक दोनों स्तरों पर  ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है. पिछले तीन वर्ष में आप  सबसे आग्रह करता आ रहा हूं कि ऐसे व्यक्तियों की जानकारी हमें दें. दुर्भाग्य से इस दिशा में अभी तक कोई काम नहीं हुआ है. मैं फिर से अपील करना चाहता हूं. कृपया इस मामले को गंभीरता से लें.

यदि अब इस समस्या का समाधान नहीं होता तो आने वाले कुछ वर्षों में एक संकट उपस्थित हो सकता है. हमारी पिछली स्वप्नदर्शी पीढ़ी ने हमें बागडोर संभलायी थी. अब समय आ गया है कि हम युवा पीढ़ी को यह काम सौंपे. मुझे विश्वास है कि इस काम में भी ईश्वर हमें राह दिखायेगा. पर हमें इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास करना होगा.

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पिछले वर्ष में भवन-परिसर के कई महत्त्वपूर्ण सदस्य हमसे विदा हो गये हैं. उनके नाम ‘नोट्स आन एजेण्डा’ में हैं. उनमें से कुछ हैं-

भवन के एस.पी. जैन इंस्टीच्यूट आफ मैनेजमेंट एण्ड रिसर्च के पूर्व डीन डॉ. मनेश एल. श्रीकांत, जिन्होंने इस संस्थान की भारत के दस सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूलों में गणना करवायी. वे सृजनात्मक प्रतिभा के धनी थे. आपने ‘भवन्स जर्नल’ में श्री दस्तूर द्वारा उन्हें दी गयी श्रद्धांजलि पढ़ी होगी.

भवन्स जर्नल के सम्पादक श्री वी.एन. नारायणन भी 15 वर्ष तक ‘भवन’ की सेवा करने के बाद हमसे बिछुड़ गये. भारत के श्रेष्ठ पत्रकारों में एक श्री नारायणन ट्रिब्यून ग्रुप के मुख्य सम्पादक रहे थे. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स, स्टेट्समेन, इण्डियन एक्सप्रेस जैसे पत्रों का भी संपादन किया. पिछले वर्ष ही ‘भवन’ ने उनके कुछ प्रतिनिधि लेखों का एक संग्रह प्रकाशित किया था.

भवन के गोआ केंद्र की प्रमुख श्रीमती मंदा बांदेकर के निधन से ‘भवन’ ने एक प्रमुख मानद सदस्य खोया है.

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आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान ने गांधीवादी साहित्य में योगदान के लिए ‘भवन’ को स्वामी प्रवणानंद शांति पुरस्कार प्रदान किया है.

इस वर्ष में हमारे बहुत से संस्थानों ने एवं परिवार के सदस्यों ने ‘भवन’ को प्रतिष्ठा दिलवायी है. उनमें से दो की चर्चा मैं यहां करना चाहता हूं.

भवन के नीलगिरि केंद्र के अध्यक्ष डॉ. एस. आर. श्रीनिवासन को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है.

‘भवन’ की कार्यकारी समिति के एक सदस्य श्री श्रीहरि अणे, जो देश के एक वरिष्ठ वकील हैं, को महाराष्ट्र का एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया है. श्री अणे पिछले दस वर्ष से ‘भवन’ के मानद कानूनी सलाहकार हैं और बहुत से जटिल मुद्दों पर उन्होंने महत्त्पूर्ण सलाह दी है. वे संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति के विद्वान हैं.

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विश्व बड़ी तेज़ी से बदल रहा है. तकनीकी क्रांति से जहां एक ओर नये अवसर उपस्थित हुए हैं, वहीं दूसरी ओर भयंकर समस्याएं भी सामने आयी हैं. हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि नये विचारों-अवधारणाओं की बाढ़ में हमारे पैर न उखड़ जाएं. हमारी दृढ़ता ही हमारी ताकत है. हमें अपनी महान विरासत एवं संस्कृति के सनातन मूल्यों के प्रति निष्ठावान रहना है.

आधुनिकता की तीव्र धाराओं एवं तेज़ी से हो रहे परिवर्तनों का हम पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि हम अपने सिद्धांतों, आदर्शों, उद्देश्यों एवं मूल्यों के प्रति निष्ठावान हैं. हमारे संकल्प एवं हमारे दिशा-बोध पर किसी प्रवाह का गम्भीर प्रभाव नहीं पड़ सकता. ये प्रवाह क्षण-भंगुर हैं. आधारभूत मूल्य अविनाशी हैं.

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अंत में, मैं आपके द्वारा दिये गये सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए आपका आभारी हूं. ‘भवन’ के सभी केंद्रों के अध्यक्षों एवं पदाधिकारियों को भी हम अपने-अपने क्षेत्र में ‘भवन’ का ध्वज ऊंचा रखने के लिए धन्यवाद देते हैं. भवन की कार्यकारी समिति, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी एवं काउंसिल के सदस्य भी विशेष धन्यवाद के पात्र हैं.

मैं यहां अपने ट्रस्टी तथा मानद कोषाध्यक्ष श्री खाण्डवालाजी के प्रति लेखा, भवन एवं जायदाद के मामलों को प्रभावकारी ढंग से निपटाने के लिए आभार प्रकट करना चाहता हूं. उनका अथक परिश्रम एवं निष्ठावान कार्य प्रशंसनीय है. इस उम्र में भी वे प्रतिदिन दफ्तर में कई-कई घंटे गुज़ारते हैं. श्री दस्तूर मुझे अक्सर कहा करते हैं कि खाण्डवालाजी ‘भवन’ के लिए बड़ी सम्पत्ति हैं.

आप सबकी ओर से मैं श्री दस्तूर के नेतृत्व में हमारे 12 हज़ार से अधिक सहयोगियों का उनके सक्षम योगदान एवं निष्ठापूर्ण कार्य के लिए गर्व एवं प्रसन्नता के साथ आभार व्यक्त करना चाहता हूं.

मैं श्री दस्तूर एवं केंद्रीय कार्यालय में उनके वरिष्ठ सहयोगियों को उनके शानदार सृजनात्मक कार्यों के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहता हूं. वे पूरी निष्ठा, दृष्टि एवं ईमानदारी के साथ भवन के मिशन को आगे बढ़ाने के काम में लगे हैं.

ईश्वर एवं देवी मां की अनुकम्पा हम सब पर बनी रहे.

धन्यवाद 

मार्च 2016

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