जनवरी 2014

Jan 2014 Cover 1-4 fnlरंग चाहे तितली के हों या फूलों के, जीवन में विश्वास के रंग को ही गाढ़ा करते हैं. पर कितना फीका हो गया है हमारे विश्वास का रंग? पता नहीं कहां से घुल गया है यह मौसम हवा में कि दूसरों की बात तो छोड़ो अपने आप पर भी विश्वास करने में डर-सा लगने लगा है. बचपन के जाने के बाद क्यों कहीं चला जाता है वह भोला विश्वास जो किसी को भी अपना बना कर सुखी हो लेता है? बड़े होने के बाद तो जैसे उल्टी होड़ लगती है- अपनों को गैर बनाने की होड़. इस प्रक्रिया की पहली सीढ़ी है अपने को सबकुछ समझना, दूसरे को, कुछ भी नहीं. दूसरे को नकारने की यह समझ पता नहीं कहां से विकसित होती है, बचपन के जाने के बाद? उससे भी अहं सवाल है, क्यों होती है ऐसी समझ विकसित? क्यों हम अपने अपने टापुओं में बंदी हो जाना पसंद करने लगते हैं बड़े हो जाने के बाद? ये सवाल कई-कई बार, कई कई तरीकों से सामने आते हैं ज़िंदगी में.

कुलपति उवाच

नैसर्गिक क्रिया
के. एम. मुनशी

शब्द-यात्रा

जावा ने बनाया सम्भव
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

नये साल पर
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

आवरण-कथा

बचपन रखो जेब में
विश्वनाथ सचदेव
ज़रा यूं समझें बचपन को
मस्तराम कपूर
जी ! मैं बचपन बोलता हूं…
रमेश थानवी
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
मनमोहन सरल
यदि आपका बालक आपसे कहे…
गिजूभाई
सरहदों को लांघतीं बाल कहानियां
भुवेंद्र त्याग
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन… क्यों?
यज्ञ शर्मा

धारावाहिक आत्मकथा

सीधी चढ़ान (बारहवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

श्रद्धांजलि

अंतिम प्रणाम
नारायण दत्त

बड़ों का बचपन

पिता ने अहिंसा का साक्षात पाठ पढ़ाया
महात्मा गांधी
ज़िद मैंने पिता से सीखी थी
नेल्सन मंडेला
फर्श पर बनाया था पिताजी का चित्र
आर. के. लक्ष्मण
पिता चाहते थे मैं कलेक्टर बनूं
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
नहीं मां, मैं अभी नहीं सोऊंगा
लियो टॉल्स्टॉय
मां हमें खास होने का अहसास कराती
चार्ली चैप्लिन
ऐसे पढ़ाई की थी मैंने
हेलन केलर
मानवता जन्मजात गुण नहीं है
चार्ल्स डार्विन
मुकाबला ईश्वर से था…
अमृता प्रीतम
फ़र्क अंग्रेज़ी और देसी का
कृष्णा सोबती

बचपन गाथा

गुल्ली-डंडा
प्रेमचंद
छोटा जादूगर
जयशंकर प्रसाद
आदमी का बच्चा
यशपाल
गुलेलबाज़ लड़का
भीष्म साहनी
बहादुर
अमरकांत
बिल्ली के बच्चे
शैलेश मटियानी
खूंटा बदल गया
सच्चिदानंद चतुर्वेदी
अलविदा अन्ना
सूर्यबाला

नाटक

ऑड मैन आउट उर्फ़ बिरादरी बाहर
सुधा अरोड़ा

कविताएं

आठ साल का वह     
इब्बार रब्बी
दो कविताएं
सूर्यभानु गुप्त
कविताएं   
नरेश सक्सेना

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