♦ आनंद गहलोत >
कुछ संस्कृत शब्दों के उसके मूल देश भारत में जो अर्थ हैं; इंद्रोनेशिया में ठीक उसके उल्टे अर्थ विकसित हो गये हैं. जावा में उच्चारण में ‘अ’ उपसर्ग हटा देते हैं; इसलिए संस्कृत में ‘असम्भव’ का जो नामुमकिन अर्थ है, वह जावाई भाषा में ‘सम्भव’ का हो गया है. किसी भी जीवित भाषा में इस तरह के गड़बड़ घोटाले को रोकना सम्भव नहीं है. हिंदी में भी खालिस को ‘निखालिस’ कहनेवालों की संख्या कम नहीं है.
‘टेलिफोन’ के लिए ‘दूरध्वनि’ शब्द भारत की नहीं, डॉ. सुकर्ण की देन है. इंदोनेशिया की एयरतेज़ का नाम रामायण के पक्षी पात्र गरुण के नाम पर ‘गरुण एयरग्जे’ रखा गया है. इंदोनोशिया में पुलिस, नम सेना, थल सेना, जल सेना सभी की आदर्शोक्तियां संस्कृत में हैं. जलसेना का आदर्श वाक्य है-‘जनोषु जयामहे’ (समुद्र पर हम विजय पताका फहराते हैं.) वायु सेना का आदर्श वाक्य है-‘स्वमुग्न पक्ष (पंखों के साथ हम अपने देश के अधिपति हैं)’
इंदोनेशियाईयों ने संस्कृत का ‘भाषा’ शब्द भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण थोड़े से उच्चारण भेद के साथ जीवित रखा है. वे अपनी भाषा को ‘बहासा इंदोनेशिया’ कहते हैं. जावाई भाषा ने संस्कृत के असंख्य शब्द आत्मसात किये; जन्म, कर्म, क्लेश, अनुपम शक्ति, वज्रशरीर जैसे शब्द भारत से सशरीर जाकर वहां बस गये.
शब्द मरते भी हैं और पुनजीर्वित भी हो जाते हैं. ‘पंचशील’ शब्द भारत कभी का भूल चुका था, लेकिन जब भारत और इंद्रोनेशिया में गूटतिरपेक्षता और सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर सहमति हुई तो संस्कृत के शब्द भंडार से ‘पंचशील’ शब्द निकाल कर उस नीति के लिए इस शब्द के प्रयोग का श्रेय इंदोनेशिया को जाता है. भारत में ‘रोज़ा’ रखनेवालों की जबान पर ‘उपवास’ नहीं चढ़ पाया है; लेकिन इंदोनेशियाई मुस्लिम ‘रोज़ा’ को उपवास कहना पसंद करते हैं.
(जनवरी 2014)