जनवरी 2012

स्वर्गीय श्रीगोपाल नेवटिया ने जनवरी 1952 में हिंदी का यह डाइजेस्ट देश को समर्पित किया था. उन्होंने पत्रिका के पहले सम्पादकीय में लिखा था- “नवनीत ज्ञान-विज्ञान और उनके सत्साहित्य की चुनी हुई जलधाराओं के अंशों को अपने घट में भरेगा… बहुतों की ज्ञान-सुधा तृप्त करने में समर्थ होगा’. पिछले साठ वर्ष की ‘नवनीत’ की कहानी हिंदी के पाठकों की ज्ञान-क्षुधा तृप्त करने की कोशिशों की ही कहानी है. स्वतंत्र भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता को ‘नवनीत’ के माध्यम से एक नयी पहचान मिली थी, और स्वतंत्र देश को एक सांस्कृतिक घोषणापत्र. सुधी समाज ने इसे हाथों-हाथ लिया. देश के वरिष्ठ रचनाकारों ने इसे एक ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण पहल के रूप में स्वीकारा. वरेण्य साहित्यकार जैनेंद्र कुमार ने ‘नवनीत’ को ‘दुनिया के उन्नत पत्रों के समकक्ष’ रखते हुए इसे हिंदी के लिए गौरव का विषय बताया था. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को यह ‘अंतरंग और बहिरंग दोनों दृष्टियों से चित्ताकर्षक और अद्वितीय’ लगा था. रामवृक्ष बेनीपुरी मानते थे कि ‘नवनीत’ ने ‘हिंदी के एक बड़े अभाव की पूर्ति की है और इसे लेकर हम संसार के किसी भी डाइजेस्ट के रूबरू खड़े हो सकते हैं’. डॉ. हरदेव बाहरी इसे ‘हिंदी की अपने ढंग की अद्वितीय पत्रिका’ मानते थे.

एक बहुत बड़ा सपना था जो ‘नवनीत’ के प्रकाशकों-सम्पादकों ने देखा था. ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृति को समेटे एक ऐसे मासिक का सपना जो नव-स्वतंत्र राष्ट्र की बौद्धिक आवश्यकताओं को भी पूरा करे और एक सांस्कृतिक परिवेश को सिरजने की भूमिका भी बनायें. इस सपने को पूरा करना एक चुनौतीपूर्ण दायित्व था, जिसे निभाने की ईमानदार कोशिश हमेशा होती रही. नेवटियाजी के निधन के बाद भारतीय विद्या भवन ने इस दायित्व को सम्भाला. साठ वर्ष तक लगातार पाठकों की कसौटी पर खरा उतरना किसी भी पत्रिका के लिए संतोष की तो बात है ही, गर्व की भी बात है. इस साठवें वर्ष में नवनीत इस संतोष और गर्व का अनुभव कर रहा है. संतोष इस बात का कि पत्रिका जिन उद्देश्यों से प्रारम्भ की गयी थी, उन्हें पूरा करने के लिए ईमानदार प्रयास करती रही, और गर्व इस बात का कि देश के पाठकवर्ग ने इस प्रयास को समझा-सराहा.

शब्द-यात्रा

कमर-कथा
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

किंतु मेरे नये साल में…
अनिकेत

कहानियां

नीले बुद्ध की वापसी
लुडविग कोच-आसइनबर्ग
सन्नाटा ही सन्नाटा
मालती जोशी
पादुका पुराण
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
खाबीदा हुसीना
अमृता प्रीतम

साक्षात्कार

मोपासां
पुरानी पत्ती
वि.स. खांडेकर
नगमे की मौत
करतारसिंह दुग्गल

व्यंग्य

मक्खीबेध-महायज्ञ
गगनबिहारी एल. मेहता
आत्महत्या वाली पहली किताब
के.पी. सक्सेना
हमारा ज़माना फिर भी अच्छा है    
विष्णु नागर
आओ, भाषा को कुर्सी बनायें
यज्ञ शर्मा

आलेख

सम्पादकीय
परम्परा और इतिहासबोध
निर्मल वर्मा
धर्म : अर्थ : काम : मोक्ष
डॉ. सम्पूर्णानंद
हिंदी स्वामिनी नहीं, सखी बनकर रहे
कुसुमाग्रज
महल और झोंपड़े
के.एम. पणिक्कर
कवि का यशगान : एक आधुनिक विडम्बना के समक्ष
धर्मवीर भारती
समष्टि ही आराध्य है
दीनदयाल उपाध्याय
सोम का कलश
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल
हीनता बोध
रमेशचंद्र शाह
मैं पुजारी होकर कभी देवता का प्रसाद चुराऊंगा नहीं
विमल मित्र
इंद्रनाथ
शरत् चंद्र
ज़हराब उगाता है जिसे
सरदार जाफरी
मेरा जीवन दर्शन                       
अल्बर्ट आइंस्टीन
आधे के हिस्सेदार
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
करुणा साहित्य की जननी
रतनलाल जोशी
जीवन-शक्ति के स्रोत का नाम है धर्म
इकेदा-टॉयन्बी
मुझे मर्दों पर रहम आता है
इस्मत चुगताई
साहित्य का जनतंत्र
दूधनाथ सिंह
सवाल है बच्चों की सही तालीम का
फ्रिट्ज काप्रा
अहमदनगर के किले में
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
सेवामूर्ति सूझी
बाबा आमटे
सावित्री और द्रौपदी के आदर्श के बहाने नारी के आदर्श की खोज
नारायण दत्त
बुढ़ापा यों बितायें
बर्ट्रैंड रसेल
रौंदें के मूर्ति मंदिर में
स्टीफन ज्वाइग
हमने धर्म की कट्टरताएं पाल रखी हैं
आचार्य महाप्रज्ञ
कविता सुमित्रानंदन पंत के जीने का सहारा थी
पी.डी. टंडन
ताकि हम मनुष्य बनकर जी सकें
न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी
बौनों के द्वीप में
एडवर्ड ए. सालिसबरी
आनंद भवन की एक सांझ
महावीर त्यागी
अणुयुगी मानव का अधिकारपत्र
नार्मन कजिंस
ऊंची सोच वाले इनसान थे मेरे बाबूजी
अमिताभ बच्चन
कवि और शब्द
उमाशंकर जोशी
एक वह अमृता
कन्हैयालाल नंदन
कविता का प्रथम उन्मेष
पाब्लो नेरूदा
कैमरे से देखी जब मैंने काशी
सत्यजित राय
साल का पहला दिन
फ्रांस्वा मोरियेक
‘मुनशीजी एक राजयोगी थे’
एस. रामकृष्णन
‘विश्वास का साहसिक अभियान’

कविताएं

चल सखि…
माखनलाल चतुर्वेदी
हम्पी
गुलज़ार
थके चरण मेरे हों
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
एक अकेली एक चेतना
हरीश भादानी
दो कविताएं
अनंत कुमार पाषाण
शाश्वत-यात्रा
भारत भूषण
दो नवगीत
नरेश सक्सेना
दो गज़लें
शीन काफ़ निज़ाम
दो कविताएं
हरिवंशराय बच्चन
बसंत की एक लहर
कुंवर नारायण
बसंती गीत
केदारनाथ सिंह
देखो परम सपने भी
भवानीप्रसाद मिश्र
कहानी कहते कहते
नरेंद्र शर्मा
दो कविताएं
नारायण सुर्वे