Category: ललित निबंध

शब्द अपने अर्थ पाने को आतुर  –    श्रीराम परिहार

ललित-निबंध आंख खुली तो पुष्प को अभ्यर्थना की मुद्रा में पाया. द्वार पर खड़ी गाय आशीर्वाद देती-सी लगी. सूर्य प्राची से निकला और असंख्य स्रोतों से ऊर्जा का वर्णन होने लगा. पक्षियों के पंखों पर आकाश उतर आया. नदी सकपकाकर…

ओ वसंत! तुम्हें मनुहारता कचनार – डॉ. श्रीराम परिहार

ललित निबंध मैं जिस महाविद्यालय में पढ़ाता हूं, उसके बगीचे में कचनार का पेड़ है- बूढ़ा और खखराया हुआ. वह ऊपर-ऊपर से सूख गया है, लेकिन छाती के पास अभी भी हरा है. कुछ टहनियां बरसात में सहज भाव से…