Category: आत्मकथांश

महामूर्ख सम्मेलन

♦  गोपालप्रसाद व्यास   > संसद भवन. प्रधानमंत्री का कक्ष. तब नेहरूजी प्रधानमंत्री थे. मैं मिलने गया. मिलने क्या गया, अपनी पुस्तकें भेंट करने गया. संसद चल रही थी. बीच में ही वहां से उठकर नेहरूजी आये. उनकी दाहिनी ओर तत्कालीन…

मेरे साहित्य की आदि-प्रेरणा

♦  गोपाल प्रसाद व्यास   > संसार के अन्य शुभ कार्यों में चाहे प्रेरणा की ज़रूरत न महसूस होती हो, मगर यह जो कविता लिखने का महाकार्य है उसमें तो प्रेरणा का दौरा पड़ना वैसे ही आवश्यक है, जैसे मलेरिया-बुखार के…

मैंने सार्वकालिक किताबें नहीं लिखीं

जॉर्ज ऑरवेल ‘बचपन से ही सोचा करता था. बड़ा होकर लेखक ही बनूंगा.’   हालांकि, सत्रह पार करते-करते इस विचार में डगमगाहट आने लगी. इसके बाद के सात-आठ साल में मैं लेखक बनने के इरादे को छोड़ देना चाहता था. कोशिश…

फ़र्क अंग्रेज़ी और देसी का

बड़ों का बचपन ♦  कृष्णा सोबती  >   बहुत पीछे लौट रही हूं. अपने बचपन की ओर. जाने कितने मोड़ उलांघ आयी हूं. हर मोड़ का एक रंग. आंखों के आगे बेशुमार रंग झिलमिला रहे हैं. ऐसा देख सकने के लिए जाने…

मुकाबला ईश्वर से था…

बड़ों का बचपन ♦  अमृता प्रीतम  >   क्या यह कयामत का दिन है? ज़िंदगी के कई वे पल, जो वक्त की कोख से जन्मे और वक्त की कब्र में गिर गये, आज मेरे सामने खड़े हैं… ये सब कब्रें…