घरघराहट इस बंद घर की सारी खिड़कियां खुली हैं पर खिड़कियों में न चिड़ियां हैं, न हवा न चांद की कंदील, न सूखे पत्तों का दिठौना इतिहास तो है हर आले और चौखट में घर की लेकिन कमरों का…
Category: कविता
कहां गयी प्यारी गौरेया – चंद्रशेखर के. श्रीनिवासन
कविता इधर–उधर उड़ती–फिरती तुम आती आंगन में, तिरती तुम, पीसा था जो आटा मां ने बिखरे जो गेहूं के दाने, वह सब चुन–चुन खाने आती, मिनटों में तुम सब चुग जाती मां गाती थी मैं था बच्चा सुनता तेरा गाना…
फागुनों की धूप ने – हरीश निगम
कविता गुनगुनी बातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने. देह तारों-सी बजी कुछ राग बिखरे तितलियों के फूल के हैं रंग निखरे गंध-सौगातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने मन उड़ा बन-पाखियों-सा नये अम्बर नेह की शहनाइयों के चले मंतर…
कविताएं कई बार – ललित मंगोत्तरा
डोगरी कविताएं कई बार मन में आती है कविता फुर्र से फिर उड़ जाती है कविता पकड़ने का यत्न करो तो उंगलियों के पोर कविता के आर-पार होकर आपस में मिल जाते हैं पर कविता फिर भी पकड़ में नहीं…
अछूत की शिकायत – हीरा डोम
कविता (सितम्बर 1914 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित भोजपुरी की इस कविता को हिंदी दलित-साहित्य की पहली कविता माना जाता है.) हमनी के रात-दिन दुखवा भोगत बानी, हमनी के सहेबे से मिनती सुनाइब। हमनी के दुख भगवनओं न देखताजे, हमनी…