Category: संपादकीय

इतने पास… पर कितने दूर (सम्पादकीय) अप्रैल 2016

संविधान-सभा की आखिरी बैठक में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने अपने भाषण में एक खतरे की ओर इशारा करते हुए चेतावनी दी थी कि राजनीतिक आज़ादी पाने के बाद यदि हमने सामाजिक आज़ादी की स्थापना नहीं की…

एक सपने के सौ साल (सम्पादकीय) मार्च 2016

सौ साल पहले एक यज्ञ शुरू हुआ था- एक सपने को पूरा करने के लिए. सपना, अपने देश को अपनी शिक्षा देने का; यज्ञ भारतीय अस्मिता की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए. यह सपना महामना मदनमोहन मालवीय का था…

गमले में वसंत (सम्पादकीय) फरवरी 2016

सम्पादकीय अर्सा पहले लिखी एक कविता की पंक्ति थी- कमरे में मेरे वसंत घुस आया है. कविता शहर में वसंत के संदर्भ में थी और यह ‘घुस आया’ शब्द कहीं न कहीं जीवन में वसंत के ज़बर्दस्ती प्रवेश की कोशिश…

सम्पादकीय (जनवरी 2016)

चिट्ठी आयी है…   प्रिय पाठक, आज मैं आपके साथ अपना एक अनुभव साझा करना चाहता हूं. लगभग बीस साल पुरानी बात है. मेरे पिताजी अक्सर मुझसे शिकायत किया करते थे कि मैं उन्हें चिट्ठी नहीं लिखता, और मेरा जवाब…

… इसलिए यह अंक

होली उल्लास का पर्व है और हास उल्लास की एक अभिव्यक्ति. जब व्यक्ति मुस्कराता अथवा हंसता है तो उसका चेहरा ही नहीं, उसका मन भी खिल उठता है. चेहरे का खिलना सब देखते हैं और मन का खिलना व्यक्ति स्वयं…