कुलपति उवाच
03 विश्व-परिवार की दिशा में
के.एम. मुनशी
संदेश
04 नयी चुनौती, नयी आशा
सुरेंद्रलाल जी. मेहता
05 नयी सफलताओं की उम्मीद
होमी दस्तुर
पहली सीढ़ी
11 बुरे वक्तों की कविता
कुंवर नारायण
धारावाहिक उपन्यास
178 ढलती सांझ का सूरज
मधु कांकरिया
शब्द–सम्पदा
192 साल-दर-साल, बारम्बार
अजित वडनेरकर
आवरण–कथा
12 मशीन होती मनुष्यता
सम्पादकीय
14 जानवर से इंसान और इंसान से रोबो…
जितेंद्र भाटिया
20 विकल्पों के चक्रव्यूह में फंसा…
रामशरण जोशी
26 आधुनिक विज्ञान और वर्चस्व…
अच्युतानंद मिश्र
34 लेखन की टेक्नोलॉजी और…
रमेश उपाध्याय
44 पुस्तकें तो हमेशा हमारे साथ होंगी
विजय कुमार
51 मशीन, ज्ञान और स्मृति : अम्बर्तो इको से बातचीत
61 संवेदनहीनता का एक नाम…
लाल बहादुर वर्मा
67 तकनीकी विकास और संवेदनाओं…
चंद्रकुमार
72 मानव होने का दर्द
अज्ञेय
78 मानवाधिकार और तकनीकी
नंदकिशोर आचार्य
82 साहित्य कला में `कल’ की…
अनूप सेठी
आलेख
58 सभ्यता का यांत्रिक मन
नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
172 नैतिकता के अद्वितीय कवि थे मंगलेश डबराल
हरि मृदुल
कविताएं
176 मंगलेश डबराल की कविताएं
टिप्पणी
88 सच होता दुस्वप्न
सुमनिका सेठी
117 दुश्मन मेमना अर्थात रचना मनुष्य होने की
विजय कुमार
142 सबसे खतरनाक है हमारी संवेदनाओं का मर जाना
मनीष वैद्य
151 मरती हुई संवेदनाओं को बचाए रखने का प्रयास
सुनील केशव देवधर
161 विवेक पर पसरता अंधेरा
गंगा शरण
194 किताबें
कथा
91 अगले अंधेरे तक – जितेंद्र भाटिया
120 दुश्मन मेमना – ओमा शर्मा
144 दादी और रिमोट – सूर्यबाला
153 फिर वापसी… – राजेंद्र श्रीवास्तव
163 जाल – ज्ञानप्रकाश विवेक
समाचार
196 भवन समाचार
200 संस्कृति समाचार