Category: विधाएँ

लाल तिकोन

⇐  अमृत राय  ⇒      कल की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं जानता कि आज के दिन हिंदुस्तान की आबादी  कितनी है. कोई नहीं जानता. और तो और, इंदिरा गांधी भी नहीं जानतीं. एक विदेशी पत्रकार ने पूछ…

किटी हाक में मेरा कैमरा

⇐  ह्यू गो पी. कुक  ⇒        ‘ह्यूगो, तुम्हारे लिए एक काम है’, मर्फी ने रहस्यपूर्ण दृष्टि से मेरी और देखते हुए कहा. उसकी इस बात से मैं कल्पना कर सकता था कि काम क्या होगा- वह किसी उत्सव…

कविता क्या है

⇐   फिराक गोरखपुरी  ⇒        बालपन से ही मैं कुछ ऐसा अनुभव करता था कि शारीरिक या ऐन्द्रिक साधनों और माध्यमों से जो कुछ मैं अनुभव करता हूं, उसके अनुसार हर वस्तु, हर घटना, भौतिक संसार की हर…

गीतों के आंसू

⇐  अहमद हमीद  ⇒     चौथी की दुल्हन नहलायी जा रही थी. ढोलक की ढांय-ढांय दिमाग पर घूंसे लगा रही थी. बच्चों की उछल-कूद देखकर मालूम होता था कि आसमान के बहुत-से मासूम फरिश्ते अब शैतान बनकर इस घर की चहारदीवारी…

पाप बहुत बढ़ गया है

⇐  कृष्णकांत चरला  ⇒ सन 1899 में कलकत्ते में भयंकर प्लेग फैला हुआ था. शायद ही कोई ऐसा घर बचा था, जिसमें रोग का प्रवेश न हुआ हो. स्वामी विवेकानंद, उनके कई शिष्य तथा गुरुभाई स्वयं रोगियों की सेवा-शुश्रूषा करते रहे,…