Tag: मनमोहन सरल

बचपन के दिन भी क्या दिन थे  

♦  मनमोहन सरल   > अभी स्कूल में ही था कि अक्सर सुनने को मिलता, ‘बचपना छोड़ो, अब तुम बड़े हो गये हो.’ कभी बाबूजी तो कभी मम्मी और दूसरे बड़े भी. कभी कोई कहता, ‘क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो?’…

अक्टूबर 2008

शब्द-यात्रा पंडित, मुल्ला और पादरी आनंद गहलोत पहली सीढ़ी  आगामी कल मेरा है कार्ल सैंडबर्ग आवरण-कथा सम्पादकीय …लेकिन प्रकाश अस्त न हो रमेश दवे जब मिलेगी रोशनी, मुझसे मिलेगी कन्हैयालाल नंदन आत्मा की मातृभाषा परिचय दास मेरी पहली कहानी दहशत…

जनवरी 2010

महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविता थी- ‘छोटे-से जीवन की कैसे बड़ी कथाएं आज कहूं/ क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूं’. यूं तो लेखक की हर रचना में कहीं न कहीं अपनी बात होती ही है…

जनवरी 2014

रंग चाहे तितली के हों या फूलों के, जीवन में विश्वास के रंग को ही गाढ़ा करते हैं. पर कितना फीका हो गया है हमारे विश्वास का रंग? पता नहीं कहां से घुल गया है यह मौसम हवा में कि…