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धुंध के पार

♦  संतोष श्रीवास्तव   >  बांस का गट्ठर ज़मीन पर पटक बापू खटिया पर बैठ पसीना पोंछने लगे. रेवली पानी का लोटा भर लायी. अंदर से माई ने हांक लगायी “रोटी तैयार है… खा लो तो चूल्हा समेटूं… ढेर काम करने…

मार्च 2014

  जब हम कोई व्यंग्य पढ़ते हैं या सुनते हैं तो अनायास चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. हो सकता है इसीलिए व्यंग्य को हास्य से जोड़ दिया गया हो, और इसीलिए यह मान लिया गया हो कि व्यंग्य हास्य…