बड़ों का बचपन ♦ आर. के. लक्ष्मण > मुझे याद नहीं पड़ता कि ड्राइंग के अलावा और कुछ करना चाहा था मैंने. बच्चा था तब भी, फिर कुछ बड़ा होने पर भी, कॉलेज में पढ़ने वाले युवा के रूप…
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कार्टूनिस्ट की स्वीकारोक्ति
♦ आर.के.लक्ष्मण दुनिया में हंसने-हंसाने को बहुत कुछ है- शीतयुद्ध, बड़े राष्ट्रों की तू-तू-मैं-मैं और विश्वविनाश के नाभिकीय षड्यंत्रों के बावजूद हंसने-हंसाने को बहुत कुछ है. और आम आदमी की दुनिया के शोरगुल के बीच…
जनवरी 2014
रंग चाहे तितली के हों या फूलों के, जीवन में विश्वास के रंग को ही गाढ़ा करते हैं. पर कितना फीका हो गया है हमारे विश्वास का रंग? पता नहीं कहां से घुल गया है यह मौसम हवा में कि…