शब्द-यात्रा चतुरन की बात में, बात-बात में बात आनंद गहलोत पहली सीढ़ी तू ही तो मही मां ! हरीश भादानी आवरण-कथा साहित्य का दायित्व विडम्बनाओं, विसंगतियों की आहटों को महसूसना ज़रूरी है चित्रा मुद्गल सतत सजगता का एक नाम है…
Tag: डॉ परशुराम शुक्ल
जून 2008
शब्द-यात्रा क्या खीर पक रही है ? आनंद गहलोत पहली सीढ़ी अमिय-रस आवरण-कथा पानी बिच मीन पियासी नंद चतुर्वेदी ऐसे चलता था समाज का खेल अनुपम मिश्र देश की जल-कुंडली पानी बचाय के ना रखब्या, तब ना हम लेबै सराध में…
मई 2008
शब्द-यात्रा तपिश दिल की बुझा लेना आनंद गहलोत पहली सीढ़ी चल अकेला रे… रवींद्रनाथ ठाकुर आवरण-कथा आगे बढ़ना है तो चलना ही पड़ेगा डॉ. कन्हैयालाल नंदन सभ्यता में पहिया अनूप सेठी साइकिल-चिंतन विजय कुमार तब जीवन का छंद कविता बनता…
मार्च 2008
शब्द-यात्रा घड़ी-घड़ी मेरा दिल धड़के आनंद गहलोत पहली सीढ़ी मर-मर क्या जीना हरीश भादानी आवरण-कथा व्यंग्य के साथ भी हंसी आती है, पर वह ऐसी नहीं होती हरिशंकर परसाई मगर इंसान हंसता क्यों है? कृश्न चंदर मेरा व्यंग्य सवालों के जवाब…
दिसम्बर 2014
बीतते वर्ष में बहुत कुछ ऐसा हुआ होता है जो पीड़ा देता है, उसे याद करके दुखी होना स्वाभाविक है. लेकिन दुखी होना मात्र तो पीड़ा से नहीं उबारेगा. ज़रूरी है हम उस दुख से उबरें जो अनचाहे अथवा अप्रिय…