व्यंग्य वर्ष 2016 स्वर्गीय शरद जोशी की 85वीं सालगिरह का वर्ष है. वे आज होते तो मुस्कराते हुए अवश्य कहते, देखो, मैं अभी भी सार्थक लिख रहा हूं. यह अपने आप में कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अर्सा पहले जो…
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वरना होली तो हो ली… – सुदर्शना द्विवेदी
फाग-राग मौसम में खुमारी अब भी आती है और हवाओं में मस्ती भी, मगर वे रंग, वह उछाव जो वसंत जाते ही फगुनाहट से रोम-रोम सिंचित करने लगता था- वह? क्या वह भी अब है? यह सवाल हाल में पूछे…
सैनफ्रांसिस्को के महाशय – इवान बुनिन
नोबेल-कथा रूसी कथाकार बुनिन का जन्म 22 अक्तूबर, 1870 को हुआ था. पूरा नाम इवान एलेक्सेविच बुनिन था. इनकी रचनाएं बहुत ही कम उम्र में छपने लगी थीं परंतु तब भी इनके शब्दों में, ‘मुझे ख्याति प्राप्त करने के लिए…
काशी हिंदू विश्वविद्यालय का कुलगीत – डॉ. शांति स्वरूप भटनागर
मधुर मनोहर अतीव सुंदर, यह सर्व विद्या की राजधानी। यह तीनों लोकों से न्यारी काशी। सुज्ञान धर्म और सत्यराशी।। बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्व विद्या की राजधानी। नये नहीं हैं ये ईंट पत्थर। है विश्वकर्मा का…
फकीर इल्म के हैं… – चकबस्त
(यह जग-ज़ाहिर है कि मालवीयजी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए किस तरह देश भर से भीख मांगी थी. गांधीजी ने तब उन्हें ‘सबसे बड़ा भिखारी’ कहा था. इस दान-यात्रा में 3 दिसम्बर 1911 को मालवीयजी लखनऊ पहुंचे थे. वहां…