सीधी चढ़ान (आत्मकथा) दूसरा खंड

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गुजराती अस्मिता को रूपाकार देने वाले कनैयालाल माणिकलाल मुनशी वस्तुतः बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. एक राजनेता, एक संविधानविद, एक कानूनविद, एक कर्मठ कार्यकर्ता के साथ-साथ वे अपने समय के प्रतिनिधि साहित्यकार भी थे. उनकी कहानियां, उपन्यास आदि आज गुजराती-साहित्य की निधि हैं. भारतीय विद्या भवन के रूप में देश को एक सार्थक संस्थान देनेवाले मुनशी ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी. आत्मकथा के पहले खंड का नाम है ‘आधे रास्ते’ और दूसरा है ‘सीधी चढ़ान’. उनके जीवन, समय और समाज को परिभाषित करनेवाली इस आत्मकथा के महत्त्वपूर्ण अंश, मुनशीजी की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में, धारावाहिक रूप में प्रस्तुत हैं. इसका गुजराती से हिंदी में अनुवाद पद्मसिंह शर्मा ने किया है.

 

सीधी चढ़ान  (दूसरा खंड) 

पहली क़िस्त


दूसरी क़िस्त 


तीसरी क़िस्त 


चौथी क़िस्त 


पांचवीं क़िस्त 


छठवीं क़िस्त  


सातवीं क़िस्त  


आठवीं क़िस्त  


नौवीं क़िस्त  


दसवीं क़िस्त  


ग्यारहवीं क़िस्त 


बारहवीं क़िस्त  


तेरहवी क़िस्त  


चौदहवीं क़िस्त 


पंद्रहवीं  क़िस्त 

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