याद रखें, जब तक आप सांस ले रहे हैं, तब तक नयी शुरुआत के लिए कोई देर नहीं हुई. – अज्ञात
प्राणायाम श्वासों के नियमन की एक प्राचीन पद्धति है. श्वास लेने, उसे रोकने और छोड़ने की कालावधि तक फैली यह क्रिया है और यह शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अनेकों पहलुओं को अपने में समेटे है.
शरीर विज्ञान के अनुसार एक कालावधि के बाद प्राणायाम पल्स रेट को कम कर देता है और हृदय सम्बंधी बीमारियों की सम्भावना को घटा देता है. यह श्वसन तकनीक शरीर की आंतरिक व्यापक शक्ति पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता करती है और सामान्य बीमारियों जैसे सर्दी, शरीर दर्द और बुखार से लड़ने की ताकत देती है. प्राणायाम यह भी तय करता है कि शरीर में अतिरिक्त रक्त संचार हो जिससे विषैले रक्त को शुद्ध किया जा सके.
नियमित प्राणायाम का अभ्यास शरीर के अपशिष्ट पदार्थों के उन्मूलन में सहायक है जो कि सामान्यतया पाचन, श्वसन, मूत्र विसर्जन और त्वचा के द्वारा बाहर निकलते हैं.
मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखें तो नियमित प्रणायाम श्वसन दर को कम करता है. जिसके चलते विचारों के आवेग को कम करने और मन को स्थिर करने में सहायता मिलती है. एक बार प्राणायाम पर ध्यान केंद्रित होना शुरू हो जाने पर मन को एकाग्रता की आदत पड़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप स्मृतिशक्ति का विकास होता है और कल्पनाशक्ति भी बढ़ती है.
मानसिक कार्य हेतु मन को उत्साहित करने के लिए उपयोग में लाया गया प्राणायाम मन को सतर्क और बोधगम्य बनाता है जो कि ध्यान पूर्व का एक उत्कृष्ट रूप है. यह पवित्रता देता है और भीतरी आध्यात्मिक प्रकाश को बढ़ाता है. यह हमारे साधारण अनुभवों को मन के अवचेतन स्तर तक पहुंचाकर स्थिरता प्रदान करता है और मन को पूर्ण शांति प्रदान करता है।
इस अभ्यास के बुनियादी सिद्धंातों का अच्छी तरह से अध्ययन कर लेना और उन्हें समझ लेना ज़रूरी है।
गुलाबराव महाराज ने कहा है- ‘योग विज्ञान के क्षेत्र में पढ़ा-लिखा मूर्ख कौन होता है? जो यम और नियमों का पालन किये बिना प्राणायाम और आसन करता है।’
समय सीमा और पूरक का सही अनुपात (श्वास भीतर लेने का समय) कुम्भक (श्वास को भीतर रोके रहने का समय) और रेचक (श्वास को बाहर छोड़ने का समय) जितना सुविधा से बढ़ा सकें उतना ही बढ़ायें बजाय उस अवधि के जो किसी दूसरे ने निर्धारित की है।
संक्षेप में, प्राणायाम का मूल विचार तंत्रिका तंत्र को शुद्ध करना और स्थिरता लाना और मन को शांत करना है जो अंततः अज्ञान को दूर करने में अग्रणी भूमिका निभाती है। ये सब वे गुण हैं जो हममें से सब चाहते हैं पर होते बहुत कम लोगों के पास हैं।
(अध्यक्ष, भारतीय विद्या भवन)