दौड़ ♦ मंजुला अग्रवाल अस्तबल में बंधे रहने वाले घोड़े ‘रेस’ नहीं जीतते. और न शतरंज के मोहरे जिंदगी की बाजी ही पीटते. बड़े-बड़े पेंचवान कन्ने से जाते हैं. जो दलदल में उतरते तूफानों से जूझते इस दौड़ में वही आगे आते हैं. (मार्च 1971)