Category: विधाएँ

सृजन-धर्म

 कवि हूं- कथ्य पर जिंदा. कि रोगी से नहीं हूं कम, जो अपने पथ्य पर जिंदा कि कवि/रोगी न होना चाहता हूं अगर, आदत डालनी होगी मुझे कि मैं रह सकूं सामर्थ्य पर, निज सत्य पर जिंदा.    ♦   अरविंद…

सत्य का गणित

♦  ब्रह्मदेव         किसी ने सच ही कहा है, अंत में, सत्य की ही जीत होती है. अंत में जब न हम रहेंगे न तुम रहोगे न कोई और रहेगा यानी तब शून्य होगा किसी दार्शनिक ने ही…

दौड़

 ♦    मंजुला अग्रवाल      अस्तबल में बंधे रहने वाले घोड़े ‘रेस’ नहीं जीतते. और न शतरंज के मोहरे जिंदगी की बाजी ही पीटते. बड़े-बड़े पेंचवान कन्ने से जाते हैं. जो दलदल में उतरते तूफानों से जूझते इस दौड़…

आमि जे बनलता

 ♦    शिवानी            बचपन की कौन-सी याद गहरी नहीं होती?      बहुत पीछे छूट गये बचपन की स्मृतियां बटोरने लगती हूं, तो एक साथ न जाने कितने चेहरे, कितनी घटनाएं, कितनी नदियां समुद्र, कितने ही शहर…

युवराज का मुंडन

   ♦    जयसुखलाल हाथी             सीमा-विवाद तो उन दिनों भी चलते थे, जब भारत पर अंग्रेज़ों का पूर्ण प्रभुत्व और शासन था.      बंबई के उच्च न्यायालय में एक महत्त्वपूर्ण मामला विचारधीन था, जिसमें एक छोटे…