स्वाधीनता व्यक्ति को पूरा मनुष्य बनाने की चेतना का ही नाम है. यही चेतना हमें उन दायित्वों से भी जोड़ती है जो एक स्वतंत्र देश के नागरिक के नाते हमारे हिस्से में आते हैं. समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता पर आधारित जिस स्वतंत्र समाज को हमने स्वाधीन भारत की एक शर्त के रूप में स्वीकार किया था, वह समाज आज बंटा-बंटा दीख रहा है. धर्म, जाति, भाषा, वर्ण, वर्ग आदि के खांचों में बांट लिया है हमने अपने आपको और यह बंटवारा हमारी स्वतंत्रता के लिए एक चुनौती बन गया है. दूसरी चुनौती दायित्वहीनता की पनपती प्रवृति की है, निजी स्वार्थों तक सीमित न रहने की है. इसे भी हमें स्वीकारना होगा.
शब्द-यात्रा
बात स्वाद की है
आनंद गहलोत
पहली सीढ़ी
लड़ो, बस…
कुसुमाग्रज
आवरण-कथा
सम्पादकीय
क्या हम सचमुच स्वतंत्र हैं?
कैलाशचंद्र पंत
क्या हम आज़ादी के काबिल नहीं?
रामशरण जोशी
कब समझेंगे हम आज़ादी की कीमत?
मधुसूदन आनंद
आज़ादी का भविष्य
यज्ञ शर्मा
स्वतंत्रता का अपमान
काका कालेलकर
गैरबराबरी की अघोषित स्वीकृति
नंद चतुर्वेदी
दुर्योधन का दरबार
आचार्य राममूर्ति
मेरी पहली कहानी
प्रभाव
स्वयं प्रकाश
आलेख
स्वाधीनता संग्राम के साहित्यिक नायक
कमल किशोर गोयनका
अकेली यात्रा की देहरी पर
अज्ञेय
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
श्रीराम परिहार
निकलेगा अमृत इस समुद्र मंथन से
सुधा सिन्हा
बेचना डोमिन के हाथों बाभन के बेटे को!
बुद्घिनाथ मिश्र
महाराष्ट्र का राज्य पुष्प – जारूल
डॉ. परशुराम शुक्ल
स्वतंत्रता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न
आचार्य महाप्रज्ञ
गुलेरी ने भी राष्ट्रगान लिखा था
सुशील कुमार फुल्ल
चंद्रशेखर आज़ाद की माताजी
बनारसी दास चतुर्वेदी
सरफरोशी – दो बिस्मिलों की एक तमन्ना
फ़ीरोज़ अशरफ़
धर्मनिरपेक्षता की भावना मर चुकी है
मोहम्मद वज़ीदुद्दीन
किताबें
व्यंग्य
नरक-यात्रा का सुख
जसविंदर शर्मा
पानी-पानी
सुधा ‘अनुपम’
धारावाहिक उपन्यास
कंथा (पंद्रहवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल
कविताएं
दो गज़लें
सूर्यभानु गुप्त
मैं भारत बन रहा हूं…
डॉ. शम्भूलाल शर्मा
दो कविताएं
रमेशचंद्र शाह
कहानियां
विभाजन की टीस
विमला मल्होत्रा
शत्रुओं का अंत (बोधकथा)
रश्मि शील
समाचार
भवन समाचार
संस्कृति समाचार