Category: विधाएँ

गुल्ली डंडा

बचपन गाथा  ♦  प्रेमचंद   >    हमारे अंग्रेज़ी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूंगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है. अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूं, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके…

तीन कविताएं

     ♦  नरेश सक्सेना   >    मढ़ी प्राइमरी स्कूल के बच्चे उनमें आदमियों का नहीं एक जंगल का बचपन है जंगल जो हरियाली से काट दिये गये हैं और अब सिर्फ़ आग ही हो सकते हैं नहीं बच्चे फूल…

दो कविताएं

♦  सूर्यभानु गुप्त   >    हम सब बच्चे कितने अच्छे! एक-दूसरे की बेमतलब आज खून की प्यासी दुनिया बम-मिसाइलों की दीवानी हथियारों की दासी दुनिया हम बच्चों से कुछ तो सीखें! हिल-मिलकर कैसे रहते हैं कैसे हर मन के आंगन…

आठ साल का वह

♦   इब्बार रब्बी    > आठ साल का हो गया पान सिंग मां देस भेज रही है उसे नीचे मुरादाबाद से उतरते ही पैसे ही पैसे हैं वहां से भेजेगा यह पान सिंग चचेरे भाई के साथ जाना वो है…

मां हमें खास होने का अहसास कराती

बड़ों का बचपन ♦  चार्ली चैप्लिन  >   हम समाज के जिस निम्नतर स्तर के जीवन में रहने को मज़बूर थे वहां ये सहज स्वाभाविक था कि हम अपनी भाषा-शैली के स्तर के प्रति लापरवाह होते चले जाते,लेकिन मां हमेशा…