♦ डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित > मानवीय चेतना की बहुअर्थी अभिव्यक्ति है शब्द. शब्द का प्रत्यक्ष उसके प्रयोक्ता की अंतश्चेतना- मानसिक ऊर्जा, बौद्धिक तर्क-वितर्क, मनोद्वेग तथा संवेदन आदि के बाह्य प्रकाशन के रूप में होता है. ज्ञान-विज्ञानात्मक वाङ्मयीन विधाओं की…
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सिर्फ फंतासी नहीं हैं विज्ञानकथाएं
♦ शैलेंद्र चौहान > उन्नीसवीं सदी के आरम्भ और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध के मध्यकाल में दुनिया भर में अनेक विज्ञान-कथाएं लिखी गयीं, जिन्होंने न केवल भविष्य के विज्ञान को परिलक्षित किया बल्कि समाज के वैज्ञानिक विकास को नियोजित…
संसाधन समाज के हैं
♦ मनसुख > जर्मनी दुनिया का जाना-माना औद्योगिक देश है, जहां दुनिया की बड़ी-बड़ी कारें बनती हैं. इस देश के एक छोटे-से कस्बे में न्यूक्लियर रीएक्टर पंप बनते हैं. कोई भी सोच सकता है कि ऐसे देश के लोग…
फ़र्क अंग्रेज़ी और देसी का
बड़ों का बचपन ♦ कृष्णा सोबती > बहुत पीछे लौट रही हूं. अपने बचपन की ओर. जाने कितने मोड़ उलांघ आयी हूं. हर मोड़ का एक रंग. आंखों के आगे बेशुमार रंग झिलमिला रहे हैं. ऐसा देख सकने के लिए जाने…
मुकाबला ईश्वर से था…
बड़ों का बचपन ♦ अमृता प्रीतम > क्या यह कयामत का दिन है? ज़िंदगी के कई वे पल, जो वक्त की कोख से जन्मे और वक्त की कब्र में गिर गये, आज मेरे सामने खड़े हैं… ये सब कब्रें…