चीनी कहानी ♦ मो यान > आकाश एवं धरती को प्रणाम कर चुकने के पश्चात, स्थूलकाय एवं श्यामवर्णी हुंग शी अंततः जब खाली हुआ तो अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं रख पा रहा था. घूंघट में होने के…
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क्रिकेट के जन्म की लोककथा
♦ कांतिकुमार जैन > उस समय मुझे यह पता नहीं था कि जिसे सारी दुनिया क्रिकेट के नाम से जानती है, वह हम बैकुंठपुर के लड़कों का पसंदीदा खेल रामरस है. ओडगी जैसे पास के गांवों में रामरस…
‘तेंदुआ गुर्राता है, तुम मशाल जलाओ’
♦ अच्युतानंद मिश्र > भारतीय तत्त्व चिंतन में भाषा, संस्कृति और धर्म को हमारी अस्मिता के अनिवार्य और अविभाज्य अंग के रूप में स्वीकार किया गया है. भाषा से संस्कृति और संस्कृति से राष्ट्र की पहचान होती है. मानव…
मैंने सार्वकालिक किताबें नहीं लिखीं
जॉर्ज ऑरवेल ‘बचपन से ही सोचा करता था. बड़ा होकर लेखक ही बनूंगा.’ हालांकि, सत्रह पार करते-करते इस विचार में डगमगाहट आने लगी. इसके बाद के सात-आठ साल में मैं लेखक बनने के इरादे को छोड़ देना चाहता था. कोशिश…
रेणु को जानने-समझने का आईना
♦ भारत यायावर > रेणु के देहावसान के बाद उनके साथ होने का अवसर मुझे मिला और धीरे-धीरे मैं इस तरह रेणु-मय होता चला गया कि बरसों मुझे यह होश नहीं रहा कि मैं रेणु से परे या अलग हूं.…