♦ विष्णु नागर > एक कुत्ता था, वह अपनी सिद्धांतवादिता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था. वह पूंछ वहीं हिलाता था, जहां हिलाना ज़रूरी होता था वरना कुछ भी हो जाए, वह हिलाता ही नहीं था. वह भौंकता भी तभी…
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गज़ल
♦ विजय ‘अरुण’ > कभी है अमृत, कभी ज़हर है, बदल बदल के मैं पी रहा हूं मैं अपनी मर्ज़ी से जी रहा हूं या तेरी मर्ज़ी से जी रहा हूं. दुखी रहा हूं, सुखी रहा हूं, कभी धरा…
दो नवगीत
♦ दो नवगीत > औंधी नावें पास नदी के बैठे प्यासे-प्यासे! औंधी नावें दूर-दूर तक रेत छूंछी गागर चील बुरे संकेत, खेत-मेड़ पर घूमे दिवस उपासे! हारे-थके पांव-पगडंडी गांव धूप-धूप है नीम पीपली-छांव, कटे एक-से अपने बारहमासे! कब लौटेंगे…
प्रभु का संरक्षण
♦ रेनू सैनी > एक यहूदी फकीर रेत पर चला जा रहा था. जब वह काफी आगे तक चला आया तो सहसा उसकी नज़र पीछे की ओर चली गयी. उसने पीछे मुड़कर देखा तो यह देखकर हैरान रह…
अच्छा लग रहा है
♦ तेज प्रकाश > और तभी सीताकांतजी ने कहा था, “ये जो अच्छा लगने वाली बात है विद्युतजी, यही तो बात है. और यह कोई छोटी नहीं, बहुत बड़ी बात है. अच्छा लगे, यह एक शुद्ध, निखालिस सुख की बात…