– किरण अग्रवाल भैयादूज के बाद आता था मनिआर्डर भैया का इंतज़ार करती थी मैं बेसबरी से डाकिये की घंटी का और डाकिया करता था इंतज़ार कि कब मैं रखूंगी उसकी हथेली पर मनिआर्डर से आये रुपयों का एक छोटा-सा…
Category: विधाएँ
चिड़िया जैसी मां
पत्र-कथा – सूर्यबाला मेरी अपनी बहुत अच्छी मां! पता नहीं अब के पहले किसी बेटे ने अपनी मां को इस तरह का पत्र लिखा या नहीं, लिखेगा भी या नहीं. पर कभी न कभी हर बड़ा हुआ, उद्विग्न, और कई…
पत्र-कथाअन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी
– सुधा अरोड़ा प्यारी मां और बाबा, चरण स्पर्श मुझे मालूम है बाबा, ल़िफ़ाफे पर मेरी हस्तलिपि देखकर ल़िफ़ाफे को खोलते हुए तुम्हारे हाथ कांप गये होंगे. तुम बहुत एहतियात के साथ ल़िफ़ाफा खोलोगे कि भीतर रखा हुआ मेरा खत फट…
स्त्रीर पत्र
पत्र-कथा रवींद्रनाथ ठाकुर श्री चरणकमलेषु! आज पंद्रह वर्ष हो गये अपने विवाह को, मगर अब तक तुम्हें चिट्ठी नहीं लिखी. हमेशा तुम्हारे पास ही पड़ी रही. मुख-जबानी अनेक बातें तुमसे सुनीं, तुम्हें भी सुनायीं. चिट्ठी-पाती लिखने की दूरी भी…
डाक बाबू
– अनिल अत्रि रोज़ रोज़ मैं राह तुम्हारी देखा करता जाने कब तुम खत मेरा लेकर आओगे नाम पुकारोगे मेरा चश्मा सीधा कर मेरे दरवाज़े की कुंडी खटकाओगे पर जब ड्योढ़ी लांघ मेरी आगे जाते हो कसम राम की संग…