छह अप्रैल 1930 को 241 मील की यात्रा करके गांधी अपने अनुयायियों के साथ गुजरात के समुद्र तट पर बसे दांडी पहुंचे थे. उस दिन गांधी ने वहां ब्रिटिश सत्ता द्वारा थोपे गये नमक-कानून का उल्लंघन करके सत्याग्रह को एक नया आयाम दिया था. यह विदेशी शासन और अमानवीय कानूनों के खिल़ाफ एक अहिंसक लड़ाई थी. उस दिन राष्ट्र ने सत्याग्रह की ताकत को समझा था और उसके महत्त्व को भी. फिर तो सारी दुनिया ने देखा कि किस तरह सत्याग्रह और अहिंसा भारत की आज़ादी की लड़ाई का हथियार बन गये. इसके साथ असहयोग को जोड़कर गांधी ने संघर्ष का एक नया व्याकरण रच दिया. लेकिन क्या जनतांत्रिक भारत में भी यह हथियार और यह व्याकरण उतने ही सार्थक हैं, जितने एक विदेशी सत्ता को समाप्त करते समय थे? डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने संविधान सभा के अपने आखिरी भाषण में सत्याग्रह को अराजकता का व्याकरण बताते हुए जनतांत्रिक देश में इसके औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाया था. आज हम गांधी के इस हथियार का जिस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे देखते हुए क्या ऐसा नहीं लगता कि आम्बेडकर सही कह रहे थे?
कुलपति उवाच
अर्थप्रिय समाज की त्रासदी
के. एम. मुनशी
शब्द यात्रा
स्वाहा, अपना प्राचीन अर्थ खो बैठा
आनंद गहलोत
पहली सीढ़ी
प्रार्थना
सुखदेव दुबे
आवरण-कथा
सम्पादकीय
असहयोग, सत्याग्रह और जनतंत्र
न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी
लोकमानस में चलती नयी दांडी-यात्रा
रमेश नैयर
सत्याग्रह की प्रयोगशाला
रामचंद्र मिश्र
क्रांति चुटकी भर नमक से
सेमदोंग रिनपोचे
सत्याग्रह का दिव्य संदेश
महात्मा गांधी
अराजकता का व्याकरण
बी.आर. आम्बेडकर
कौन बचेगा यदि भारत मरता है?
जवाहरलाल नेहरू
धारावाहिक आत्मकथा
सीधी चढ़ान (पंद्रहवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी
व्यंग्य
रिटर्न ऑफ नगीना बाबू
प्रियदर्शी खैरा
आलेख
भारतीय वाङ्मय और साप्रदायिकता
रमेश दवे
अमृत की कामना करना ही शिव है
लक्ष्मीकांत वर्मा
पुरखों का पाथेय
बलराम
मेघालय का राज्य वृक्ष – गंभार
डॉ. परशुराम शुक्ल
एक बेटे और पैंतीस हजार बेटियों की मां
निकोलस क्रिस्टोफ
हे श्वेतकेतु, वही तू है
इला कुमार
लुपिता को एक पत्र मिला था…
जागना है तो निद्रा त्यागें
डॉ. नरेश
एकलव्य का अंगूठा कटने के बाद
सुधीर निगम
विवादों के बवंडर का नोबेल विजेता ः गुंटर ग्रास
कपिल आर्य
किताबें
कहानियां
घटोत्कच
शशिकांत सिंह शशि
आवाज़ें
वंदना शुक्ल
संयम की परीक्षा (बोधकथा)
डॉ. रश्मि शील
कविताएं
दो कविताएं
नंद चतुर्वेदी
दो ग़ज़लें
निदा फाज़ली
शिलावन-वासी
ओम प्रभाकर
समाचार
भवन समाचार
संस्कृति समाचार