जंगल में रब्बर शेर

♦  जवाहर चौधरी    >

उसने पहले मार्क्स को पढ़ा, इसके बाद गांधी को भी. एक प्रबुद्ध शेर को बाज़ार के जंगल में भूखों मरने के लिए इतना काफी था. धीरे-धीरे उसका वजन घटने लगा, घटना ही था, गिरे पड़े फल और कंद-मूल आखिर कितना अंग लगते! टमाटर-सलाद खाने वाला वह अपनी नस्ल का पहला शेर था जिसे जंगल के प्राणी बुद्धिजीवी कहते थे. पुराने जमाने में राजाओं के दरबार में ज्ञानी-ध्यानी, विद्वानों को रखने का रिवाज था क्योंकि राजा को चाटुकारिता के बदले इनाम देने की आदत हुआ करती थी. बड़े मजे थे. यों देखा जाए तो रब्बर शेर के पास भी सुनहरा मौका था, वह भी जंगल के महाराज सिंह के चरणों में बैठकर आराम से बचा-खुचा शिकार पा ही जाता. किंतु उसकी शिक्षा और प्रगतिशीलता आड़े आ गयी. सोच लिया कि दरबार में नहीं बैठूंगा, तो नहीं ही बैठा. यदा-कदा गोष्ठियों में कहता कि दरबारी व्यवस्था से मेरा विरोध है. जब-जब महाराज-सिंह अपनी पेट पूजा के लिए किसी निरीह जानवर को मारता, वह एक बाकायदा शानदार कविता लिखता और तुरंत कॉफी हाउस में बैठे प्रबुद्ध जानवरों को सुना देता. उसकी कविता जंगल वालों के लिए एक अनिवार्य शोकगीत के रूप में पसंद की जाने लगी, वे वाह-वाह कर उठते. जानवरों को तसल्ली होती कि चलो मरने वाला भले ही मर गया लेकिन जंगल में उसके नाम की एक कविता ने तो जनम लिया. सब जानते थे किसी न किसी दिन उन्हें भी चपेट में आना है. मौत तो तय है, परंतु एक कविता तय हो जाए तो पन्नों में जी लेंगे. कॉफी हाउस में बैठने वाले कई प्राणी कविता सुनते, चर्चा करते, रब्बर शेर की सोहबत में साहित्यकार हो गये. जब अच्छा खासा महौल हो गया तो सबने मिलकर एक ‘वनवासी लेखक संघ’ बना लिया.

इधर ‘जंगल-सेठ’ हाथी को अपने धन की रक्षा के लिए कुछ नया करने की सूझी और उसने ‘जंगल टाइम्स’ नाम का अखबार निकालना शुरू कर दिया. अब जंगल में बाकायदा दो ताकतें हो गयीं, सिंह और हाथी. शुरू-शुरू में हाथी ने अपने अखबार में जंगल साहित्य के लिए कुछ पृष्ठ रखे और जंगल के तमाम छोटे-बड़े प्राणियों को छापा. कुछ जानवर, यानी प्राणी बार-बार छपे और जंगल में महान होने लगे. लेकिन हाथी ने बुद्धिजीवी रब्बर शेर को अभी तक घास नहीं डाली थी. लिहाजा वह हाथी की गतिविधियों से नाराज़ रहने लगा. उसने हाथी के अवैध कार्यों को भी अपनी कविता के माध्यम से जंगल में उजागर करना आरम्भ किया. सिंह की तरह हाथी भी अंदर ही अंदर रब्बर शेर से खुन्नस रखने लगा. लेकिन जंगल का जनमत उसके साथ था सो लाचारी थी.

मौका देख कर हाथी ने सिंह के जन्मदिन पर अपने अखबार में परिशिष्ठ निकाले. सिंह के लिए ‘जन्मदिन की लख-लख बधाई’ और मंगलकामनाओं के साथ अनेक पृष्ठ रंग दिये. जो अब तक बचते चले आये थे ऐसे बूढ़े हिरणों के इंटरव्यू छापे, जिसमें उन्होंने महाराज सिंह की कृपा का गुणगान किया. अब सिंह की हर छोटी-बड़ी दहाड़, घोषणाएं, नीतियां और बकवास तक जंगल-टाइम्स में छपने लगीं. जैसा कि उम्मीद थी सिंह प्रसन्न हो गया. सिंह ने एक शाम हाथी को रायल-क्लब में शानदार काकटेल पार्टी दी. हाथी बहुत पीकर सिंह के चरणों लोटने लगा और तभी खड़ा हुआ जब सिंह ने उसके माथे पर पेशाब करके बाकायदा उसे अपने संरक्षण में ले लिया. डिस्कवरी चैनल से पता चलता है कि सिंह इसी तरह संरक्षण प्रदान करते हैं.

एक दिन सिंह ने हाथी को कहा कि साहित्य-वाहित्य छाप कर तुम अपना कागज़ ही नहीं जानवरों का दिमाग भी खराब करते हो. एक रब्बर शेर ही क्या कम था जो दूसरे बद्दिमागों की नस्ल तैयार कर रहे हो! साहित्य की जगह सरकारी योजनाओं और घोषणाओं के विज्ञापन छापो, तुम्हारा फायदा होगा और सरकार का भी.

हाथी की तो मुराद पूरी हो गयी. सरकारी विज्ञापन एक तरह का ‘खुल जा सिम सिम’ होते हैं. एक बार सेटिंग हो जाए तो बस महल के आगे जा कर कहो ‘मिल जा सरकारी विज्ञापन’ और आराम से अशर्फियों से बोरा भर लाओ. हाथी अखबार निकालते चालाक हो गया था सो उसने तत्काल अपनी प्रसन्नता व्यक्त नहीं की और सिंह को चिंता के दायरे में ही कैद रखने का प्रयास किया. बताया कि रब्बर शेर लघुपत्रिका निकाल रहा है और लोग उसे पढ़ भी रहे हैं! अब उसमें न केवल सरकार की आलोचना होती है बल्कि जंगल टाइम्स को भी घसीटा जाता है.

महाराजा सिंह बोले- हम खुद रब्बर से परेशान हैं लेकिन उसे मार नहीं सकते क्योंकि वह हमारे खानदान का है, हमारी खून-भाई है! जैसे सलीम से परेशान अकबर चाहकर भी उसे मार नहीं सकता था. सरकार से गलती यह हो गयी कि उसे पढ़ा-लिखा दिया, अब भुगत रहे हैं.

हाथी ने राजा सिंह के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए सुझाव दिया कि किसी भी तरह इसे अब रोकना ज़रूरी हो गया है. विचार वह बीमारी है जो हमारी व्यवस्था को तबाह कर सकती है. इसीलिए मैं जंगल-टाइम्स में लोमड़ियों-बंदरियों के सेक्सी फोटो और गॉसिप छाप कर जंगली-जनता को मूर्खताओं में उलझाए रखता हूं. पर लघुपत्रिकाओं के जरिए विचार फैलना कम खतरनाक नहीं है.

चिंतित सिंह ने हाथी को चिंतित न होने के लिए कहा. बताया कि रब्बर शेर अपनी प्रकृति के विरुद्ध कंदमूल खा रहा है सो ज्यादा दिनों जिएगा नहीं. तुमने देखा ही होगा कि कितना दुबला हो गया है, हाड़ ही हाड़ है, मांस का तो पता ही नहीं है शरीर में. हमें उसके मरने का इंतज़ार करना चाहिए.

हाथी के पास पत्रकार थे सो उसके पास ताज़ा और ज्यादा खबरें थीं. उसने बताया कि अभी तो रब्बर के मरने की सम्भावना दिखती नहीं है. हरिद्वार के किसी बाबा ने उसे कपालभाती और अनुलोम-विलोम सिखा दिया है. शाकाहारी वो है ही, लगता है आपके खानदान में सबसे लम्बी आयु पाएगा.

राजा सिंह ने दसवां पैग उठाते हुए हाथी से ही कोई उपाय बताने को कहा. सोच-विचार चलता रहा, योजनाएं बनती रहीं. देर रात दोनों झूमते हुए उठे.

अगले हफ्ते राजा सिंह ने आदेश जारी किया कि जंगल-टाइम्स के मालिक श्री हाथी जहां-जहां भी लीद करेंगे उसके आसपास की दस हजार वर्ग मीटर ज़मीन उनकी होती जाएगी. श्री हाथी की इस ज़मीन में किसी को चारा चरने या कंदमूल प्राप्त करने की अनुमति नहीं होगी. हाथीजी को यह अधिकार होगा कि वे अपनी लीद से वहां के जानवरों को बेदखल कर दें.

जंगल में विरोध हो रहा है. राजा सिंह विरोध को दबाने के लिये ‘लॉ एण्ड ऑर्डर’ के नाम पर सेना भेज रहे हैं और हाथी जगह-जगह लीद कर जंगल-टाइम्स के नये संस्करण निकाल रहा है. उधर लाचार रब्बर शेर जगह जगह नुक्कड़ नाटक करने की योजना बना रहा है.

(मार्च 2014)

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