दो नवगीत

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औंधी नावें

 पास नदी के बैठे

प्यासे-प्यासे!

औंधी नावें
दूर-दूर तक
रेत
छूंछी गागर
चील
बुरे संकेत,

खेत-मेड़ पर घूमे
दिवस उपासे!

हारे-थके
पांव-पगडंडी
गांव
धूप-धूप है
नीम
पीपली-छांव,

कटे एक-से अपने
बारहमासे!

 

कब लौटेंगे तोतें

दूर-दूर तक धूप
कहीं न छांव!

आंधी-धूल
स्याह सन्नाटे
गिद्धों के पहरे

सूनी-सूनी
अमराई के
घाव बहुत गहरे,

जाने कब लौटेंगे
तोते गांव?

नाव-नदी
पनघट के रिश्ते\
रेत हुए सारे

ऊंची-ऊंची
दीवारों से
हारी बौछारें,

खाली हाथ हवा के
टूटे पांव!

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