♦ दो नवगीत >
औंधी नावें
पास नदी के बैठे
प्यासे-प्यासे!
औंधी नावें
दूर-दूर तक
रेत
छूंछी गागर
चील
बुरे संकेत,
खेत-मेड़ पर घूमे
दिवस उपासे!
हारे-थके
पांव-पगडंडी
गांव
धूप-धूप है
नीम
पीपली-छांव,
कटे एक-से अपने
बारहमासे!
कब लौटेंगे तोतें
दूर-दूर तक धूप
कहीं न छांव!
आंधी-धूल
स्याह सन्नाटे
गिद्धों के पहरे
सूनी-सूनी
अमराई के
घाव बहुत गहरे,
जाने कब लौटेंगे
तोते गांव?
नाव-नदी
पनघट के रिश्ते\
रेत हुए सारे
ऊंची-ऊंची
दीवारों से
हारी बौछारें,
खाली हाथ हवा के
टूटे पांव!