चिट्ठी नाम की ‘चीज़’ हमारे हाथों से फिसलती जा रही है- ठीक वैसे ही जैसे रेत हाथों की उंगलियों से फिसल जाती है. पता ही नहीं चलता कब मुट्ठी खाली हो जाती है. संचार-क्रांति के इस युग में चिट्ठियां बीते…
Tag: रमेश नैयर
दिसंबर 2008
शब्द-यात्रा ‘कुर्बान’ से बलिदान तक आनंद गहलोत पहली सीढ़ी एक अकेली एक चेतना हरीश भादानी आवरण-कथा अंधे-अंधेरे समय में नैतिक प्रतिज्ञाओं को बचाना है नंद चतुर्वेदी सज्जनों का मौन गज्यादा खतरनाक है न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी उन्मादी नहीं जानते वे क्या कर…
अक्टूबर 2014
उजाले के प्रति आस्था और विश्वास का यह स्वर वस्तुतः जीवन के प्रति उस लगाव की प्रतिध्वनि है, जो सांसों को परिभाषित भी करता है, और परिमार्जित भी. रात जब बहुत लम्बी हो जाती है तो भोर के उजाले के…
अगस्त 2012
आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारतमाता की जय का नारा लगाने वाले युवाओं से जवाहरलाल नेहरू ने एक बार पूछा था, यह भारतमाता है क्या? फिर स्वयं ही इसका उत्तर भी दिया था उन्होंने- इस देश की करोड़ों-करोड़ें जनता ही…
अप्रैल 2014
छह अप्रैल 1930 को 241 मील की यात्रा करके गांधी अपने अनुयायियों के साथ गुजरात के समुद्र तट पर बसे दांडी पहुंचे थे. उस दिन गांधी ने वहां ब्रिटिश सत्ता द्वारा थोपे गये नमक-कानून का उल्लंघन करके सत्याग्रह को एक…