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दो नवगीत

♦ दो नवगीत  >   औंधी नावें  पास नदी के बैठे प्यासे-प्यासे! औंधी नावें दूर-दूर तक रेत छूंछी गागर चील बुरे संकेत, खेत-मेड़ पर घूमे दिवस उपासे! हारे-थके पांव-पगडंडी गांव धूप-धूप है नीम पीपली-छांव, कटे एक-से अपने बारहमासे!   कब लौटेंगे…

मार्च 2008

शब्द-यात्रा घड़ी-घड़ी मेरा दिल धड़के आनंद गहलोत पहली सीढ़ी  मर-मर क्या जीना हरीश भादानी आवरण-कथा व्यंग्य के साथ भी हंसी आती है, पर वह ऐसी नहीं होती हरिशंकर परसाई मगर इंसान हंसता क्यों है? कृश्न चंदर मेरा व्यंग्य सवालों के जवाब…