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ताकि लेखन साहित्य न बन जाये!

♦  शरद जोशी   > श्रे ष्ठ का विशेषण तो दूर, मुझे अपने लिखे पर व्यंग का विशेषण लगाते भी अच्छा नहीं लगता. यह एक खुशफहमी भी हो सकती है कि मेरी रचनाएं व्यंग हैं. दरअसल मेरी कोई पंद्रह बीस रचनाएं…

मार्च 2014

  जब हम कोई व्यंग्य पढ़ते हैं या सुनते हैं तो अनायास चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. हो सकता है इसीलिए व्यंग्य को हास्य से जोड़ दिया गया हो, और इसीलिए यह मान लिया गया हो कि व्यंग्य हास्य…