Tag: आधे रास्ते

आधे रास्ते (चौथी क़िस्त)

1913 तक मैं कनुभाई था– मां-बाप का, नाते-रिश्तेदारों का, जाति का, गांव में मुझे जो पहचानते थे उनका, मास्टरों का, बड़ौदा कालेज के सहपठियों तथा प्रोफेसरों का. कितनी ही बार घर के लाड में मुझे ‘भाई’ कहते और माताजी तथा…

आधे रास्ते (तीसरी क़िस्त)

जब मेरा जन्म हुआ तो मुझे बड़ा लाड़-प्यार मिला. छह लड़कियों के बाद मैं ही एक लड़का था. सबको प्रतीक्षा कराते-कराते मैंने थका डाला था. मेरे आते ही पिताजी तहसीलदार हुए. फिर जब मैं छोटा था तब मैंने सबके मन…