Category: कुलपति उवाच

ईश्वर का अस्तित्व

आत्मा के द्वारा आत्मा का प्रतिकार करना मनुष्य या समूह के व्यक्तित्व का विकास करने के लिए आवश्यक है. इसके बिना भावना या गतिशील एकता सम्भव ही नहीं है. परंतु किसी प्रकार का प्रतिकार करने के लिए जैसे शक्ति आवश्यक…

अपना धर्म

धर्म, नीति या शिक्षा के क्षेत्र में साधन या नियमन के जो कुछ प्रयास होते हैं, उनमें अधिकांश यह वस्तु भुला दी जाती है कि मनुष्य का विशिष्ट स्वभाव ही व्यक्तित्व की एकमात्र नींव या आधार है. मैं जवानी में…

नैसर्गिक क्रिया

व्यक्तिगत जीवन में सौंदर्य के चरणों में शरणागति ली हो तो उससे वस्तुमात्र में परम सौंदर्य को तथा परम सौंदर्य में वस्तुमात्र को देखने वाली शरणागति निष्पन्न होना नैसर्गिक क्रिया है. कला और जीवन में सौंदर्य के प्रति चाह, वासना…

न कोई कर्म ऊंचा है, न नीचा

कुलपति के. एम. मुनशी

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, “क्या कर्म है और क्या अकर्म, इस विषय में बुद्घिमानों की बुद्घि भी चकरा जाती है. बहुत से लोगों ने इस कठिनाई में कर्म-संन्यास की शरण ली है. संसार से दूर हट जाने में, गुफाओं…

ब्राह्मण कौन है?

कुलपति के. एम. मुनशी

चातुर्वर्ण्य का आदर्श और व्यवहार में उसका अमल, इन दोनों का एक-दूसरे पर पारस्परिक प्रभाव हुआ है; और उन्होंने मिलकर भारत के सामाजिक विकास को दिशा दी है. श्रीकृष्ण का उपदेश  गतिशील था, इसलिए उन्होंने वर्ण का निश्चय जन्म के…